क्या आप जानते हैं कि भारत के हिंदू किस देवी या देवता की पूजा सबसे ज्यादा करते हैं? राम, कृष्ण, शिव, विष्णु या फिर लक्ष्मी की? अगर आपने अयोध्या में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन देखा है और आप नए-नए राम भक्त हुए हैं तो आप कह सकते हैं कि वो राम ही है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा पूजे जाते हैं। लेकिन ये सच नहीं है। जी हां, अगर मैं ये कहूं कि देवी-देवताओं की पूजा को लेकर हमारे देश में एक सर्वे हो चुका है और उससे ये साबित हो चुका है कि भारत में कौन सा देवता सबसे ज्यादा पूजा जाता है? तो क्या आप मेरा यकीन करेंगे?
देवी-देवताओं की पूजा पर हो चुका है रिसर्च
चलिए आपको सबूत दिखाते हैं। 29 जून 2021 को दुनिया भर में मशहूर रिसर्च एजेंसी Pew Research Center ने एक सर्वे किया था जिसे Religion in India: Tolerance and Segregation नाम से प्रकाशित किया गया था। इस रिसर्च में देश भर से करीब 30,000 भारतीयों से उनके धर्म, आस्था, धर्म-निरपेक्षता और राष्ट्रभक्ति जैसे मसलों पर फेस टू फेस सवाल-जवाब किए गए। इन 30 हज़ार लोगों से ये भी पूछा गया कि आप किस देवता को सबसे ज्यादा मानते हैं? आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि सर्वे के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा पूजा राम की नहीं बल्कि किसी और देवता की होती है। राम इस ओपनियन पोल में बुरी तरह से पिछड़ गए थे।
सबसे ज्यादा किस देवता की पूजा ?
इस सर्वे के मुताबिक पहले नंबर पर शिव हैं जिन्हें 44 % हिंदू अपना देवता मानते हैं। यानी भारत में सबसे ज्यादा पूजा शिव की होती है, राम की नहीं। दूसरे नंबर पर हनुमान हैं और उन्हें 35 % लोग अपना पूजनीय देवता मानते हैं। तीसरे नंबर पर गणेश हैं जिन्हें कुल 32 % लोगों ने अपना करीबी देवता बताया। चौथे नंबर की बात करें तो धन की देवी लक्ष्मी को 28 % लोगों ने अपनी पूजनीय देवी माना और पाँचवें नंबर पर कृष्ण को 21 % लोगों ने अपना ईष्ट देव बताया। सर्वे में शामिल लोगों में से 20 % की पहली पसंद काली हैं और राम की जहां तक बात है, राम को महज़ 17 % लोगों ने ही अपना पूजनीय देवता माना। यानी टॉप-7 देवी-देवताओं में से राम सबसे आखिर में हैं।
इस सर्वे का जिक्र क्यों ?
लेकिन अब बहुत से लोग ये भी सोच रहे होंगे कि भला मैं यहां इस बात का जिक्र क्यों कर रहा हूं कि भारत में सबसे ज्यादा राम की नहीं बल्कि शिव की पूजा होती है? तो इसका जवाब मैं आपको दे देता हूं। दरअसल मैं इस बात का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि क्योंकि जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर का भव्य उद्घाटन किया गया और आधे-अधूरे मंदिर में रामलला की मूर्ति को लगाकर पीएम मोदी और बीजेपी ने राम के नाम पर 2024 के लोकसभा चुनाव की पिच तैयार करने की कोशिश की है, वो सियासत के सिवा कुछ नहीं है। बीजेपी कह रही है कि भारत के कण-कण में राम हैं जबकि रिसर्च रिपोर्ट कह रही है कि भारत में सबसे ज्यादा राम की नहीं बल्कि शिव की पूजा होती है।
आप खुद इस बात का अंदाज़ा लगाइये। आपके आसपास जो मंदिर होंगे वहां शिव लिंग तो ज़रूर मिल जाएगा लेकिन राम की मूर्ति या राम दरबार नहीं मिलेगा। कहने का मतलब ये है कि बीजेपी जिस राम के नाम पर दो सीटों वाली पार्टी से प्रचंड बहुमत वाली पार्टी बन गई, वो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राम का ही इस्तेमाल करने जा रही है। सारे देश में राम मय माहौल बनाकर जनता को बीजेपी से जोड़ने की कोशिश हो रही है। ये ऐसे राम भक्त हैं जिन्होंने अपने भगवान को ही चुनाव प्रचार की सामग्री बना दिया है। अब बीजेपी वाले मोदी के काम पर नहीं बल्कि राम के नाम पर वोट मांग रहे हैं। राम को देश भर में पॉपुलर करने और फिर अयोध्या में मंदिर उद्घाटन का श्रेय लेकर पीएम मोदी तीसरी बार देश की गद्दी पर बैठने का सपना देख रहे हैं।
गरीब लोगों को 5 किलो राशन पर निर्भर बनाया जा रहा है और जो मोदी भक्त हैं उन्हें अब राम भक्त बनाने की तैयारी है। यानी एक तरफ ये कहा जाएगा कि राम मंदिर की लहर में मोदी तीसरी बार भी जीत रहे हैं और दूसरी तरफ EVM माता के नाम पर भी खेल किया जा सकता है। राम मंदिर को इतनी ज्यादा कवरेज़ दी जा रही है, हर मोहल्ले में राम कथा और रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। लोगों को अयोध्या जाने के लिए बसों में भर-भर कर ले जा रहा है और दिन रात सवर्ण मीडिया के एंकर-एंकराणी दिन रात यही कह रहे हैं कि देखो अद्भुत अयोध्या में दिव्य दरबार लगा है औऱ मोदी जी के कारण ही ये सच हो पाया है। यानी जनता को राम नाम की चासनी चटाई जा रही है।
EVM से ध्यान भटकाने की कोशिश ?
कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि राम के नाम पर माहौल बनाकर EVM के ज़रिए बड़ा खेल किया जा सकता है क्योंकि जिस तरह से पिछले दिनों EVM के खिलाफ जन आंदोलन बढ़ रहे हैं, कहीं ना कहीं EVM की विश्वसनियता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं इसलिए ऐसे में माहौल ही अगर एक तरफा कर दिया जाए तो फिर EVM को कौन दोष देगा? इसलिए इस खेल के कई सियासी मायने हैं।
जाति के सवाल पर क्या बोले भारतीय ?
वैसे Pew Research Center की रिपोर्ट में जाति का सवाल भी पूछा गया था। भारत एक जाति प्रधान देश है और इसका सबूत ये रिसर्च रिपोर्ट है। सर्वे में शामिल 70 % लोगों का कहना है कि उनके सारे दोस्त उन्हीं की जाति के हैं। यानी भारत में लोग जाति देखकर सिर्फ शादी-ब्याह नहीं करते बल्कि स्कूल से लेकर कॉलेज तक उनका दोस्त कौन होगा, ये उनकी जाति के आधार पर ही तय हो रहा है। इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ। अपनी जाति से बाहर यानी किसी दूसरी जाति में शादी करने को लेकर भी लोगों ने अपनी जातिवादी सोच को ज़ाहिर किया।
सर्वे में शामिल 64 % भारतीयों ने ये कहा कि उनकी जाति की महिलाओं को दूसरी जाति के मर्दों से शादी करने से रोकना बहुत ज़रूरी है वहीं 62 % लोगों ने ये भी कहा कि उनकी जाति के पुरुषों को दूसरी जात की औरतों से शादी नहीं करनी चाहिए और उन्हें रोका जाना चाहिए। राम कण-कण में हैं या नहीं, इसका तो पता नहीं लेकिन जाति भारत के कण-कण में ज़रूर बसी हुई है। जाति यहां लोगों की रगों में लहू के साथ-साथ दौड़ रही है लेकिन फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि अब जातिवाद नहीं होता। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए और किसी के नाम पर नहीं बल्कि सरकार के किए काम पर ही अपना कीमती वोट देना चाहिए। लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत जनता के हाथ मैं है इसलिए हमारी आपसे अपील है कि इस खेल को समझिए और अपने मत का सही इस्तेमाल करिए।