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मायावती के जन्मदिन पर पढ़िए उनके जीवन की 25 अनसुनी कहानियां, मायावती के बहनजी बनने का पूरा सफर

दिल्ली की तंग गलियों से निकली एक युवा दलित महिला ने अपने बलबूते राजभवन तक का सफ़र तय किया। देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी… हर विरोध सहा, मनुवादियों की गालियाँ खाई, सियासत के दाँवपेंच देखे, कभी एनकाउंटर होने से बाल-बाल बची तो कभी जानलेवा हमले से… लेकिन मायावती किसी चट्टान की तरह डटी रहीं। चलिए हमारे साथ… मायावती की ज़िंदगी के सफ़र पर

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मायावती…भारतीय लोकतंत्र का एक चमत्कार और करोड़ों दलितों के लिए स्वाभिमान की हुंकार। मायावती का नाम भारतीय राजनीतिक इतिहास में अमर हो चुका है। दिल्ली की तंग गलियों से निकली एक युवा दलित महिला ने अपने बलबूते राजभवन तक का सफ़र तय किया। देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी… हर विरोध सहा, मनुवादियों की गालियाँ खाई, सियासत के दाँवपेंच देखे, कभी एनकाउंटर होने से बाल-बाल बची तो कभी जानलेवा हमले से… लेकिन मायावती किसी चट्टान की तरह डटी रहीं। चलिए हमारे साथ… मायावती की ज़िंदगी के सफ़र पर….मायावती की 25 कहानियाँ और इसमें कई कहानियाँ ऐसे होंगी जो पहले आपने कभी नहीं सुनी होंगी। 

1. मायावती का जन्म दिल्ली के इंद्रपुरी इलाक़े में 15 जनवरी 1956 को हुआ था। 1975 में मायावती ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकॉनोमिक्स में बीए की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होंने बी.एड. की पढ़ाई की और बतौर टीचर काम करते हुए डीयू से अपनी एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। मायावती यूपीएससी की परीक्षा पास कर एक आईएएस अफ़सर बनना चाहती थी और उसके लिए तैयारी भी करती थीं। लेकिन मान्यवर कांशीराम साहब के कहने पर मायावती ने अपना घर और सपना दोनों छोड़ दिए। 

2. मायावती और मान्यवर कांशीराम की पहली मुलाक़ात की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। 1977 की एक सर्द रात में मान्यवर कांशीराम दिल्ली के इंद्रपुरी इलाक़े में प्रभुदयाल जी के घर पहुँचे थे… मायावती उस समय लालटेन की रोशनी में पढ़ाई कर रही थी। मान्यवर ने उनसे पूछा… तुम क्या बनना चाहती हो ? इस पर मायावती ने कहा ‘मैं IAS अफसर बनना चाहती हूं ताकि अपने समाज के लिए कुछ कर सकूं’ …. मायावती के इस जवाब पर कांशीराम ने कहा ‘मैं तुम्हें उस मुकाम पर ले जाऊंगा जहां दर्जनों IAS अफसर तुम्हारे सामने लाइन लगाकर खड़ें होंगे। तुम तय कर लो, तुम्हें क्या बनना है?’

दरअसल इस मुलाक़ात से एक दिन पहले मायावती दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में भाषण दे रही थी… मायावती ने मंच से ही कांग्रेसी नेता राजनारायण को दलितों को बार बार हरिजन कहने पर बुरी तरह लताड़ा था। एक 21 साल की लड़की का ऐसा रुख़ देखकर ही मान्यवर कांशीराम साहब मायावती से प्रभावित हो गए थे।

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मायावती के फर्श से अर्श तक पहुंचने के गवाह उनके पिता रहे (Photo-Internet)

3. मायावती के पिता प्रभुदयाल पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे और वो चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिखकर IAS बने लेकिन जब मायावती ने कांशीराम जी के साथ जाने का निर्णय लिया तो प्रभुदयाल जी काफी दुखी हुए। उन्होंने ये तक कह दिया था कि अगर ये रास्ता चुनना है तो मायावती को घर छोड़ना पड़ेगा। इस कठोर फैसले के बाद मायावती ने घर छोड़ दिया और मान्यवर कांशीराम साहब के साथ वो चल पड़ी सियासत के उस सफर पर जिसका सपना देखना भी भारत के दलितों के लिए किसी मुश्किल से कम नहीं था। 

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4. मान्यवर कांशीराम साहब रणनीति बनाने में माहिर थे तो मायावती एक तेज़तर्रार वक्ता थीं। उनकी भाषण शैली ऐसी थी कि सुनने वाले जोश से भर जाते थे। मायावती और कांशीराम की जोड़ी ने बड़ी तेज़ी से संगठन का विस्तार किया और अपने सियासी सपने को पूरा करने के लिए आबादी के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को चुना। 

5. 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना हुई। दिल्ली के रामलीला मैदान में मान्यवर कांशीराम और मायावती ने देश के बहुजनों की तक़दीर बदलने की हुंकार भरी और इस तरह से मायावती चुनावी राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गईं। इस बारे में मायावती ने कहा था ‘मैंने राजनीति में आने का जो फ़ैसला किया तो मुझे दूसरे नेताओं की तरह राजनीति विरासत में नहीं मिली। हमारे परिवार में कोई राजनीति में नहीं है, दूर-दूर तक हमारे रिश्ते नातों में भी कोई राजनीति में नहीं है।’ लेकिन बिना राजनीतिक विरासत के भी मायावती ने देश की सियासत खलबली मचा दी। 

सियासत में कुछ भी आसान नहीं होता और अगर आप भारतीय समाज की जातीय संरचना में सबसे निचले पायदान से ऊपर उठने की कोशिश करते है तों मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं। मायावती को भी शुरुआत में कई हार मिली लेकिन वो रुकी नहीं।

6. मायावती ने पहली बार 1984 में कैराना से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गई। उसके बाद 1985 में बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से भी हार ही मिली। लेकिन 1989 के उपचुनाव में मायावती बिजनौर सीट से चुनाव जीत कर देश की संसद के अंदर पहुँच गईं। 1989 के आम चुनाव में बीएसपी को तीन और 1991 के चुनाव में दो सीट मिली थीं। 

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गेस्टहाउस कांड में मायावती पर हुए जानलेवा हमले के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आया था जब मायावती का एनकाउंटर होने वाला था? 

7. दिसंबर 1991 की एक सर्द सुबह क़रीब साढ़े चार बजे थे… यूपी के प्रयाग स्टेशन पर ट्रेन से एक महिला क़ैदी को नीचे उतारा गया… जब वो महिला क़ैदी रेलवे लाइन को पार कर रही थी तब पुलिस इंस्पेक्टर ने उस महिला का एनकाउंटर करने के लिए अपनी रिवॉल्वर निकाली…लेकिन ट्रेन में सवार आर्मी के जवानों ने पुलिस वाले को देख लिया और ख़बरदार किया… इस तरह उस महिला क़ैदी की जान बच पाई… जिस महिला को पुलिस वाला मारना चाहता था उसका नाम था मायावती… मायावती के करीबी रहे सरवर हुसैन ने इस किससे के बारे में बताया था… दरअसल उस दिन मायावती की लखनऊ हाईकोर्ट में पेशी के बाद इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में वापस जा रही थीं… बुलंदशहर में मतपत्र देखने को लेकर मायावती और डीएम में छीना-झपटी हो गई थी और उसी केस में उन्हें इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में रखा गया था।

8. मायावती एक माहिर वक़्ता थी और इस वजह से बहुजन समाज में उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ती चली गई। कांशीराम जी के सहयोग से मायावती ने सियासत के दाँवपेंच सीखे और 1993 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर यूपी में चुनाव लड़ा और सरकार बना ली। उस समय एक नारा काफ़ी मशहूर हुआ था… मिले मुलायम कांशीराम… हवा हो गए जय श्रीराम…. यूपी में गठबंधन सरकार बनाने के बाद 3 अप्रैल 1994 में मायावती राज्यसभा पहुँच गई। उच्च सदन में बीएसपी की वो पहली सांसद थीं। 

8. 1995 में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ लिया और ये मायावती के लिए एक निर्णायक साल बना… 2 जून 1995 को लखनऊ के गेस्ट हाउस में मायावती पर समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने हमला कर दिया। मायावती के साथ जमकर बदसलूकी की गई। बाद में मायावती ने कहा कि सपा समर्थक उनकी हत्या करना चाहते थे। गेस्ट हाउस कांड, मायावती ने कई बार कहा कि वो गेस्ट हाउस कांड के लिए मुलायम सिंह यादव को कभी माफ़ नहीं करेंगी। भाजपा नेता लालजी टंडन के कहने पर ब्रह्मदत्त तिवारी ने गेस्ट हाउस पहुंचकर मायावती को बचाया था जिसके बाद लालजी टंडन मायावती के धर्म भाई बन गए। मायावती ने बाक़ायदा राखी बांधकर लालजी के प्रति अपना रिश्ता ज़ाहिर किया। कहते हैं बीजेपी और बीएसपी के गठबंधन में भी लाल जी निर्णायक भूमिका निभाई थी और मायावती को सीएम बनाने में भी मदद की थी। 

9. 1995 में राज्यपाल ने मुलायम सिंह यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया और मायावती बीजेपी की मदद से यूपी की मुख्यमंत्री बन गई। सीएम की कुर्सी तक पहुँचने वाली वो देश की पहली दलित महिला थी। तब देश के प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने इसे ‘लोकतंत्र का चमत्कार’ कहा था लेकिन उनकी सरकार सिर्फ़ 4 महीने ही चल पाई… बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और मायावती की पहली सरकार 4 महीने में ही गिर गई। 

मायावती को क़रीब से जानने वाले लोग भी मानते हैं कि बहनजी को समझना काफ़ी मुश्किल है। मायावती सियासत की एक मंझी हुई खिलाड़ी हैं जिन्होंने फ़र्श से अर्श तक का सफ़र अपनी सूझबूझ और संघर्ष के दम पर तय किया है। सियासी गुणा-भाग में भी मायावती सटीक निशाना लगाती हैं। 

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(फोटो- विमल वरुण)

10. 1996 में बीएसपी ने यूपी की 425 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन महज़ 67 सीट ही जीत पाई। लेकिन बीजेपी के साथ दूसरी बार गठबंधन हुआ और 1997 में मायावती ने दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बीजेपी की शर्त थी कि 6 महीने बाद उनका सीएम बनेगा लेकिन 6 महीने पूरे करने के बाद मायावती ने बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया। बाद में बीजेपी ने किसी तरह अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार चलाई। 

11. 2002 में मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की। लेकिन ताज कॉरिडोर केस में वित्तीय गड़बड़ियों का आरोप लगने के बाद मायावती ने साल 2003 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। मुलायम सिंह यादव ने बीएसपी के बाग़ियों के साथ मिलकर यूपी में सरकार बना ली। 

12. 2003 में बहुजनों के मसीहा मान्यवर कांशीराम साहब को ब्रेन स्ट्रोक हो गया। लगातार काम करने और यात्राएँ करने के कारण उनकी तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी। इसके बाद मायावती को 2003 में बीएसपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया और वो पिछले 19 साल से बीएसपी की सबसे बड़ी नेता के रूप में काम कर रही हैं। 

मायावती और कांशीराम साहब के रिश्ते को लेकर भी सवाल उठते रहे। अक्सर उनके चरित्र पर भी दाग़ लगाने की कोशिश की गई। दोनों के बारे में ना जाने कैसी-कैसी बातें की गई लेकिन इससे मायावती विचलित नहीं हुईं।

13.  एक इंटरव्यू में मायावती ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था ‘जब कोई त्याग करके आगे बढ़ता है तो विरोधियों के पास एक ही मुद्दा होता है, कैरेक्टर को लेकर बदनाम करना। मान्यवर कांशीराम जी को मैं अपना गुरु मानती हूँ और वो मुझे अपना शिष्य मानते हैं। ’

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Art by Lokesh

14. 2001 में मान्यवर कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उन्होंने इस बारे में कहा था ‘मुझे लगा कि अगर इनको आगे बढ़ने का मौक़ा दिया जाए तो राजनीति में ये काफ़ी आगे बढ़ सकती हैं। राजनीति में बढ़ने की जो खूबियाँ हैं, वो कुछ खूबियाँ मुझे उनमें नज़र आईं’

15. क़रीब 2 साल तक बिस्तर पर रहने के बाद कांशीराम जी 2006 में चल बसे। कांशीराम साहब के महापरिनिर्वाण से मायावती को सबसे बड़ा धक्का लगा… लेकिन मायावती अपनी सियासी सफ़र में आगे बढ़ती रही। 2007 में मायावती ने वो करिश्मा कर दिखाया जिसकी उम्मीद शायद ही किसी को थी। मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग की ऐसी करामात दिखाई की दलित और ब्राह्मण वोटर्स साथ आए और मायावती पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की मुख्यमंत्री बन गई। 

16. मायावती ने बहुजनों को राजनीतिक सत्ता में पहुँचाने के बाद सामाजिक न्याय की गारंटी देने का काम किया। उन्होंने यूपी में प्राइवेट सेक्टर में भी दलितों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया। प्रमोशन में आरक्षण लागू किया। उन्होंने सबका साथ और सबका विकास फ़ॉर्मूले पर अमल किया… एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था ‘2007 मेरी सरकार बनने से पहले मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और उन्होंने भर्तियों पर रोक लगा रखी थी। मेरी हुकूमत में मैंने वो बैन हटाया और क़रीब 30 लाख अपर कास्ट लोगों को नौकरियाँ दी।’

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17. 2007-08 के दौरान मायावती सबसे ज़्यादा इनकम टैक्स देने वालों में 20वें नंबर पर थीं। उन्होंने 26 करोड़ सिर्फ़ इनकम टैक्स के तौर पर भरा था। 2001 में उनकी एक करोड़ की घोषित आय 2007 में 50 करोड़ हो गई थी। मायावती ने कहा था कि ये रक़म पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें बतौर डोनेशन दी थी। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई ने मायावती के ख़िलाफ़ जाँच शुरू की और उन्होंने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मायावती ने कहा ‘कांग्रेस अपनी सरकार बचाने के लिए सीबीआई जैसी उच्च जाँच एजेंसी का दुरुपयोग करके मेरे ऊपर राजनीतिक दबाव बनाने की पूरी कोशिश की है।’

18. मायावती ने अपनी चौथे कार्यकाल में बहुजन इतिहास को जीवित करने के लिए भी काफ़ी काम किया। चाहे नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल हो या फिर लखनऊ का डॉ आंबेडकर पार्क… मायावती ने बहुजन नायक-नायिकाओं के सम्मान में ऐतिहासिक काम कर दिखाया। जिन बहुजन नायक-नायिकाओं को इतिहास में कभी उचित सम्मान नहीं मिला था, मायावती ने उनकी शानदार प्रतिमाएँ लगाकर बहुजन समाज से उनका परिचय कराया। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को एकता और दलित नायक-नायिकाओं की मूर्तियों को फ़िज़ूल खर्च बताने वाले लोग अक्सर मायावती पर हमलावर रहते हैं। लेकिन आज उनके काम की तारीफ़ हर जगह हो रही है। 

कुछ लोगों को सिर्फ़ मायावती के बनाए पार्क ही नज़र आते हैं लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि मायावती के कार्यकाल में ही यूपी ने विकास की तेज़ रफ़्तार हासिल की थी। आज नोएडा और ग्रेटर नोएडा यूपी की शान है… इसे मायावती ने ही विकसित किया था। चाहे नोएडा मेट्रो हो या फिर ताज एक्सप्रेस वे… मायावती ने तमाम ऐसे काम कर दिखाए, जिन्हें बाकि पार्टियाँ सिर्फ़ चुनावी घोषणा पत्रों तक ही सीमित रखती हैं। 

19. 2012 में भारत का पहला फ़ॉर्मूला वन रेसिंग ट्रैक यानी बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट नोएडा में खुला और मायावती ने अपने हाथों से विजेताओं को ट्रॉफ़ी देकर इतिहास रच दिया। आज बुद्धा इंटरनेशल सर्किट भारत में F1 रेसिंग का बेताज़ बादशाह है। इसके अलावा मायावती ने गौतमबुद्ध नगर में महामाया बालिका और बालक इंटर कॉलेज खोले और गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी जैसा नायाब तोहफा दिया। नोएडा को शानदार अस्पताल भी मिला लेकिन फिर कुछ लोगों को सिर्फ सिर्फ पार्क ही नज़र आते हैं।

20. मायावती के शासन काल में एक सबसे बड़ी ख़ास बात ये रही कि यूपी में अपराध पर लगाम लगी। आँकड़े बताते हैं कि मायावती ने जब-जब यूपी के सीएम की कुर्सी सँभाली, तब-तब अपराधी सलाख़ों के पीछे नज़र आए। साथ ही मायावती के शासनकाल में कभी भी हिंदू-मुस्लिम दंगे नहीं हुए। मायावती ने एक कुशल प्रशासक की भूमिका निभाई। 

21. मायावती के हेयरस्टाइल के पीछे भी एक कहानी है। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था। ‘दरअसल लंबे बाल होने पर मुझे बार-बार उन्हें बांधना पड़ता था। मुझे 6-7 जगह जाना पड़ता था तो बार-बार कंघी करके बाल बांधने पड़ते थे और मेरा समय बहुत ख़राब होता था। इसलिए अपना समय बचाने के लिए मैंने बाल ही कटवा दिए ताकि मेरा वक़्त बर्बाद ना हो। 

22. मायावती ने जो करिश्मा 2007 में कर दिखाया था उसे वो 2012 में नहीं दो पाईं और अखिलेश यादव ने यूपी की सत्ता उनसे छीन ली। इसके बाद मायावती राज्यसभा आ गईं लेकिन सहारनपुर हिंसा पर जब उन्हें सदन में अपनी बात तक नहीं रखने दी गई तो उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से ही इस्तीफ़ा दे दिया। 

एक रैली में मायावती ने कहा था ‘जब एक दलित की बेटी चार-चार बार यूपी की सीएम बन सकती है तो देश की पीएम क्यों नहीं बन सकती?’ भारतीय सियासत में मायावती को पीएम मैटिरियल माना जाता रहा है लेकिन उनकी राह और भी मुश्किल होती जा रही है। 

23. 2014 में जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो विपक्षी पार्टियाँ राहुल गांधी को यूपीए का चेहरा बनाने पर राज़ी नहीं थीं। ऐसे में सबकी नज़रें मायावती पर थी कि उनके ना पर किसी को दिक़्क़त नहीं होगी और एक दलित की बेटी नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकती है। लेकिन बीएसपी ने अकेले ही यूपी की 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारे… देश में तीसरे नंबर पर वोट शेयर हासिल किया लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई। 

24. 2017 के चुनाव में भी मायावती की पार्टी बीएसपी बुरी तरह हारी और महज़ 19 सीट ही जीत पाई। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र मायावती ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से हाथ मिला लिया। यूपी की सियासत में ये किसी चमत्कार से कम नहीं था…सियासत पर नज़र रखने वालों ने कयास लगाए कि अगर यूपी में महागठबंधन अच्छी सीट जीत गया तो मायावती का पीएम बनना लगभग तय है। मायावती ने गेस्टहाउस कांड का दर्द भी भुला दिया और वो मुलायम सिंह यादव के साथ मंच पर नज़र आई… लेकिन हाथी और साइकिल के साथ आने पर भी नतीजे मन मुताबिक नहीं आए। बीएसपी ने 10 सीटें जीती तो एसपी महज़ 5 सीट ही हासिल कर पाई… और एक बार फिर से दोनों पार्टियों के रास्ते अलग-अलग हो गए।

25. 15 मार्च 2020 को नोएडा में भीम आर्मी चीफ़ चंद्रशेखर आज़ाद ने आज़ाद समाज पार्टी का गठन किया। यूपी की दलित राजनीति में ये बड़ा दखल है जो मायावती की दलित राजनीति पर असर डाल सकता है। लोग मानते हैं कि इससे दलित वोटों का बँटवारा हो सकता है लेकिन मायावती अपने हिसाब से ही रणनीति तैयार कर रही हैं। आयरन लेडी के नाम से मशहूर मायावती को जानने वाले लोग मानते हैं कि बहन जी के लिए कुछ भी असंभव नहीं। अब मायावती असली और सबसे मुश्किल परीक्षा 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में होनी है।

मायावती एक ऐसा किरदार है जिनकी शख़्सियत का अंदाज़ा सिर्फ़ चुनावी नतीजों के आधार पर लगाना उनके व्यक्तित्व को कम आँकने जैसा होगा। लेकिन ये भी सच है कि सियासत में नतीजों से बढ़कर कुछ नहीं होता। अगर मायावती 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में कोई चमत्कार कर दिखाती हैं तो निश्चित तौर पर दलित राजनीति का भविष्य एक बार फिर से मायावती के भरोसे ही तय होगा।

 

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