ये मदर इंडिया हैं… अपने 9 बच्चों का पेट भरने के लिए प्रभा देवी दो सेर चावल और क़रीब आधा सेर दाल माँग कर लाई हैं… महबूब खान के निर्देशन में बनी फ़िल्म मदर इंडिया की राधा की तरह ही प्रभा देवी भी अपने बच्चों के पेट की आग बुझाने के लिए दिन-रात जुटी रहती हैं…. बिहार के पूर्वी चंपारण के बहादुर पर इलाक़े की इस मदर इंडिया के पास भीख माँगने के सिवा कोई रास्ता नहीं… जब बच्चे भूख से तड़पते हैं तो भला किसे याद रहेगा… आत्मसम्मान, गरिमा और मर्यादा… रात भर बुख़ार में तपने के बाद भी प्रभा देवी सुबह होते ही झोली लेकर निकल पड़ी क्योंकि भूख से ख़तरनाक कुछ नहीं होता।
पहचान साबित करने के लिए कोई कागज नहीं
सरभंग यानी भंगी जाति से आने वाली प्रभा देवी के पास सिर छुपाने के लिए इस तिरपाल के सिवा कुछ नहीं है… दुष्ट मनु की बनाई जाति ने प्रभा देवी और उसके बच्चों को आज भी अछूत बना रखा है। प्रभा देवी के पास ख़ुद की पहचान साबित करने का कोई दस्तावेज़ नहीं है… ना ही आधार कार्ड है और ना ही वोटर कार्ड… काग़ज़ नहीं दिखा सकती इसलिए बच्चों को स्कूल में एडमिशन भी नहीं मिलता।
बाबा साहब का नाम भी नहीं सुना
जिन दलितों के लिए डॉ बाबा साहब आंबेडकर ने अपनी ज़िंदगी लगा दी, प्रभा देवी ने उनका नाम तक नहीं सुना है… ये विडंबना ही है कि प्रभा देवी को आरक्षण का मतलब तक नहीं पता। मदर इंडिया फ़िल्म में जैसे शामू राधा देवी को अकेला छोड़ गया था, वैसे ही प्रभा देवी का पति भी पिछले तीन साल से ग़ायब है.. ज़िंदा है या मर गया… प्रभा देवी नहीं जानती।
क्या इस ‘मदर इंडिया’ की सुनेगा इंडिया ?
चाँद पर मिशन भेजने वाले देश में इस मदर इंडिया की बस इतनी सी चाहत है कि उसे रहने को एक घर मिल जाए और उसके बच्चों को भीख ना माँगनी पड़े….सवाल वही है… क्या विश्वगुरु होने का दावा ठोंकने वाला ये देश प्रभा देवी जैसी मदर इंडिया के दर्द को कभी देख पाएगा? वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
पूर्वी चंपारण से मीना कोटवाल के साथ टीम… द शूद्र