प्रशांत भूषण केस में कोर्ट की अवमानना पर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट के बारे में एक और बड़ा खुलासा हुआ है। खुलासा ये है कि देश की सबसे बड़ी अदालत में सिर्फ चुनिंदा जातियों के लोग ही जज की कुर्सी पर विराजमान हैं जबकि देश की बहुसंख्यक आबादी यानी एससी-एसटी और ओबीसी समाज के साथ-साथ अल्पसंख्यकों की नुमाइंदगी ना के बराबर है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील नितिन मेश्राम ने आज ट्विटर पर सुप्रीम कोर्ट के 31 जजों का जातिवार विश्लेषण किया तो हर कोई हैरान रह गया। देश की सबसे बड़ी अदालत में सिर्फ एक दलित जज है तो वहीं ओबीसी के महज़ 2 जज हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति का एक भी जज नहीं है।
नितिन मेश्राम के मुताबिक फिलहाल उच्चतम न्यायालय में कुल 31 जज हैं। उसमें से ब्राह्मण-12, वैश्य-6 (खत्री-2, पारसी-1, अन्य-3), कायस्थ-4 (कम्मा-2, मराठा-1, रेड्डी-1), ओबीसी-2, ईसाई-1, मुस्लिम-1, एससी-1, एसटी-0, महिलाएं-2 हैं।
Diversity# in Supreme Court ⚖️
📅Total Judges + CJI = 31
1️⃣Brahmins = 12
2️⃣Vaishya: (a) Khatri 2
(b) Parsi 1
(b) other vashya 3
Total = 63️⃣Kayastha = 4
4️⃣Non OBC
(a) Kamma 2
(b) Maratha 1
(c) Reddy 1
Total = 45️⃣OBC = 2
6️⃣Christian 1
7️⃣Muslim 1
8️⃣Dalit 1
—
🔀Women 2— Nitin Meshram (@nitinmeshram_) August 23, 2020
नितिन मेश्राम के इस ट्वीट के बाद से सोशल मीडिया पर लोग सुप्रीम कोर्ट में चुनिंदा जातियों के जज होने का विरोध कर रहे हैं। लोग लिख रहे हैं कि जब भारत का संविधान विविधता की बात करता है तो देश की सबसे बड़ी अदालत में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल उत्तर भारत की तीन प्रमुख ओबीसी जातियों यादव, कुर्मी और कुशवाहा का एक भी जज ना होने का ज़िक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आधे से ज्यादा जजों के ब्राह्मण होने पर सवाल उठाते हैं।
उत्तर भारत की तीन सबसे बड़ी जातियों – यादव, कुर्मी, कुशवाहा- से सुप्रीम कोर्ट में आज तक एक भी जज नहीं बना है। लगभग आधे जज सिर्फ़ ब्राह्मण जाति से बने हैं।
लोकतंत्र में किसी भी संस्था को ऐसा नहीं होना चाहिए।
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) August 23, 2020
ऑल इंडिया परिसंघ की ओर से कहा गया कि चुनिंदा जातियों के ही जज होना ऐसा है जैसे पूरे जंगल में सिर्फ यूकेलिप्टस के पेड़ लगे हों।
उत्तर भारत की तीन सबसे बड़ी जातियों – यादव, कुर्मी, कुशवाहा- से सुप्रीम कोर्ट में आज तक एक भी जज नहीं बना है। लगभग आधे जज सिर्फ़ ब्राह्मण जाति से बने हैं।
किसी भी संस्था को ऐसा नहीं होना चाहिए। देखने में बुरा लगता है। जैसे कि पूरे जंगल में सिर्फ़ यूकेलिप्टस के पेड़ लगे हों।
— All India Parisangh (@aiparisangh) August 23, 2020
वहीं स्वीडन की Uppsala University में प्रोफेसर अशोक स्वैन लिखते हैं ‘ब्राह्मण भारत की आबादी का 4 फीसदी हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 40 फीसदी जज ब्राह्मण हैं। मुस्लिम भारत की आबादी का 14 % हैं लेकिन कुल जजों में से सिर्फ 3 % सुप्रीम कोर्ट के जज मुस्लिम हैं। दलित 17 % हैं लेेकिन सिर्फ जो कुल जजों का 3 % है, वहीं अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 9 % है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उनका एक भी जज नहीं है।’
https://twitter.com/ashoswai/status/1297462300404846593
जाति और धर्म के अलावा सुप्रीम कोर्ट में लैंगिक विविधता भी नहीं दिखती। देश की सबसे बड़ी अदालत में सिर्फ 2 महिला जजों का होना दिखाता है कि ब्राह्मणवादी पितृसत्ता की जड़ें कितनी मज़बूत हैं।
https://twitter.com/Manisha_Ahlawat/status/1297494047628472321
इसके अलावा नितिन मेश्राम ने राज्यवार जजों की सूची जारी कर बताया कि कैसे सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व भी समान नहीं है।
Supreme Court:
Total Judges + CJI = 31
—
Regional diversity1️⃣North India = 23
2️⃣South India = 8
—
State wise:➡️Mah = 6
➡️Delhi = 4
➡️UP = 3
➡️Karn = 3
➡️WB = 3
➡️AP+TG = 3➡️ RJ = 2
➡️P&H = 2➡️MP= 1
➡️GJ = 1
➡️Bihar = 1
➡️Madras = 1
➡️Kerala = 1#️⃣Subject to ± error.
— Nitin Meshram (@nitinmeshram_) August 23, 2020
जय भीम