मैं महर्षि वाल्मीकि के किरदार को हमेशा अलग नज़र से देखता रहा हूँ। इस बारे में मेरे कुछ सवाल हैं।
1. मैं ये कभी नहीं समझ पाया कि जिस वक़्त रामायण लिखी गई, उन्हीं सालो में एक शूद्र शंबूक को ज्ञान हासिल करने के अपराध में राम ने मौत के घाट उतार दिया था। ये जानकारी कथित तौर पर वाल्मीकि रामायण में ही दर्ज है। इसका मतलब ये हुआ कि उस समय शूद्रों को ज्ञान हासिल करने यानी पढ़ने–लिखने की इजाज़त नहीं थी।
2. जब शूद्रों को पढ़ने–लिखने की इजाज़त नहीं थी तो महर्षि वाल्मिकी ने पढ़ाई–लिखाई कैसे की? और वो भी संस्कृत भाषा में पढ़ाई जिसे देव भाषा कहते हुए किसी श्लोक के उच्चारण भर पर शूद्रों की ज़ुबान काटने का विधान बना रखा था।
3. महर्षि वाल्मिकि के गुरु कौन थे जिन्होंने उन्हें शूद्र होते हुए भी अपना शिष्य स्वीकार किया क्योंकि गुरुकुलों में तो सिर्फ़ ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बच्चों की ही एंट्री होती थी।
4. अगर महर्षि वाल्मिकि ने ख़ुद से शिक्षा हासिल की तो फिर उन्होंने ब्राह्मणों और क्षत्रियों के जातिवादी व्यवहार और उत्पीड़न को बया करने की जगह रामायण जैसा ग्रंथ क्योें लिखा जो ‘राजधर्म‘ के नाम पर शंबूक हत्या को जायज़ ठहराता है?
5. अगर उस समय महर्षि वाल्मिकि शिक्षा हासिल कर पाए थे तो फिर कोई और शूद्र क्यों नहीं पढ़–लिख पाया ?
6. वर्ण–व्यवस्था का शिकार कोई भी व्यक्ति अपने आप पर और अपने परिवार–रिश्तेदारों पर अमानवीय अत्याचार करने वाले, उन्हें पशुओं जैसा जीवन जीने और नर्क जैसे हालातों में रहने के लिए मजबूर करने वालों को देवता की तरह कैसे स्थापित कर सकता है ?
7. क्या महर्षि वाल्मिकि का किरदार इसलिए गढ़ा गया कि वर्णवाद को स्थापित करने वाले ग्रंथों को किसी शूद्र के हाथ का लिखा हुआ बताकर उसे शूद्रों में आसानी से मान्यता मिल सके और वर्ण–व्यवस्था का कोई विरोध ना करे ?
8. आज बहुत सारे बहुजन महर्षि वाल्मिकि को पूजते हैं, मैं उनकी आस्था का सम्मान करता हूँ। मेरा मकसद किसी की भावाओं को आहत करना नहीं है लेकिन क्या कोई इन सवालों के जवाब जानने में मेरी मदद कर सकता है ?
लेखक – सुमित चौहान (फाउंडिंग एडिटर, द शूद्र)
बेहतरीन सवाल है, क्या कोई व्यक्ति कितना भी मुसीबत मे हो अपने परिवार के ऊपर अभद्र लिख सकता है? उत्तर होगा नही अगर हा तो वह व्यक्ति उस परिवार से ताल्लुक नही रख सकता,
मेरा इशारा परिवार का मतलब समाज से है