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तो क्या इन वजहों से BJP को जितवा देगी SP-BSP ? प्रो दिलीप मंडल ने उठाए जरूरी सवाल

बीएसपी ने 2007 और सपा ने 2012 के बाद से यूपी में कोई चुनाव नहीं जीता है। अपने फ़ैसलों पर पुनर्विचार करने में कोई बुराई नहीं है।

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(Photo - Samajwadi Party)

यूपी में विधानसभा सीटें- 403, रिज़र्व सीटें- 86, बची- 317… पार्टियों की राजनीति देखिए। सपा और बीएसपी: कुल ओपन सीट/टिकट- 317, मुसलमानों को आम तौर पर दी जाती हैं 90-100, बची- 217, इनमें से सवर्णों के आम तौर पर दी जाती हैं- 90 से 125 बची कितनी?.

अब बची- 90 से 100 इनमें यादव, कुर्मी, लोधी, कुशवाहा को मिली- 50 से 70, अति पिछड़ों के लिए बची 20-30, जिनकी आबादी कम से कम 30% है। दरअसल सपा-बसपा जहां से उन्हें वोट नहीं आ रहा है उन सवर्णों को लगभग सौ टिकट देंगी। अति पिछड़ों को देने के लिए इनके पास टिकट होता ही नहीं है।

बीजेपी का गणित – वह भी 317 में सवर्णों को सवा सौ टिकट ही देती है। लेकिन मुसलमानों को न देने के कारण उसके पास लगभग 80-90 टिकट एक्स्ट्रा निकल आते हैं। यही टिकट अति पिछड़ों को वह दे रही है, जहां 30% वोट हैं। सपा और बसपा अब चुन ले। तीन ही रास्ते हैं –

1. सपा और बसपा जो कर रही, वह करती रहे। अति पिछड़ों को बीजेपी ख़ेमे में रहने दे। उम्मीद करें कि सवर्ण कभी उनके पास ज़रूर लौटेगा।

2. मुसलमान वोट देगा ही, ये मानकर उनके टिकट काटे। ये रास्ता यूपी में ओवैसी साहब को स्थापित करने का रास्ता है। ओवैसी साहब में कोई काँटे नहीं लगे हैं।

3. सवर्णों को दिए जा रहे टिकट और इस तरह मिलने वाले वोट का वैज्ञानिक तरीके से आकलन करें और अपनी रणनीति बदले। सवर्णों को इतने टिकट न दे दे कि 30% अति पिछड़ों को देने के लिए कुछ बचे ही नहीं।

बीएसपी ने 2007 और सपा ने 2012 के बाद से यूपी में कोई चुनाव नहीं जीता है। अपने फ़ैसलों पर पुनर्विचार करने में कोई बुराई नहीं है। कोई चीज़ तो है जो अटक गई है। पहचान नहीं करेंगे तो फिर हारेंगे।

अति पिछड़ों को सपा और बसपा टिकट कम दे रही है। सवर्णों को 90-125 देने के बाद बचते ही नहीं है। उन्होंने अति पिछड़ों को धक्का मारकर बीजेपी ख़ेमे में पहुँचा दिया है। जब सपा और बसपा मुक़ाबले में थी, तब तक इनका खेल चल गया। अब नहीं चल पाएगा।

इन ट्विट को सुरक्षित रख लीजिए। मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं ग़लत साबित हुआ। अगर सौ सवा सौ सीट सवर्णों को देकर सपा या बसपा जीत जाती है तो बुरा क्या है? चुनाव है। जीतना सबसे महत्वपूर्ण है।

(वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल के ट्विटर अकाउंट से साभार। व्यक्त विचार निजी हैं)

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