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सिनचन फाउंडेशन ने बदला आदिवासियों का जीवन, नक्सल प्रभावित इलाके के लोगों को किया डिजिटल रुप से शिक्षित !

सिनचन फाउंडेशन वर्तमान समय में नक्सल प्रभावित गांव में युवाओं को रोजगार परक शिक्षा देने का काम कर रहा है।

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फोटो - सौजन्य, द लॉजिकल इंडियन

देहरादून के गौतम बिष्ट ने बिहार के नक्सल प्रभावित आदिवासी गांव में लोगों को बेहतर जीवन देने का एक सपना देखा, जिसको पूरा करने के लिए गौतम ने एक डेवलपमेंट व्यवसायी शुवाजीत चक्रवर्ती के साथ मिलकर 2019 में सिनचन एजुकेशन एंड रूरल एंटरप्रेन्योरशिप फाउंडेशन की शुरूआत की, ये एनजीओ वर्तमान समय में नक्सल प्रभावित गांव में युवाओं को रोजगार परक शिक्षा देने का काम सफलता पूर्वक कर रहा है।

कैसे हुई सिनचन की शुरूआत ?

गौतम बिष्ट ने 2015 में अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली से मास्टर डिग्री पूरी की, इसके बाद एमफिल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ग्रामीण समुदाय के साथ रहते हुए उनकी समस्याओं और समाधानों से संबंधित एक शोध रिपोर्ट पेश करनी थी, इस कोर्स के दौरान गौतम बिष्ट का बिहार के चकाई ब्लॉक के एक नक्सल प्रभावित आदिवासी गांव में जाना हुआ, वहां लोगों की जीवनशैली देख गौतम के मन में उन्हें शिक्षा और बुनियादी सुविधाएं देने का विचार जागा। जिन आदिवासी गांवों में गौतम अपनी रिसर्च के दौरान गए वहां जल निकाय सूख हुए थे, लोग महीनों तक सिर्फ आलू और चावल का ही भोजन दिन में दो बार करते थे।

सिनचन फाउंडेशन का उद्देश्य

सिनचन फाउंडेशन एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो समुदाय के युवाओं के साथ प्रासंगिक शिक्षण ढांचे को डिजाइन करने और ग्रामीण उद्यमशीलता के लिए काम करता है। गौतम बिष्ट ने बताया कि ‘आदिवासी समुदाय में बच्चे सबसे ज्यादा स्कूल छोड़ देते हैं, यही हम बदलना चाहते हैं। हमें लोगों को शिक्षित और रोजगार परक बनाना था।

जिसके लिए हमने आदिवासी इलाकों में पहले तो लोगों को सीधे तौर पर शिक्षित किया लेकिन जब कोरोना काल के दौरान कठिन हालात देखे तो हमने डिजिटल रुप से शिक्षित करने की सोची, जिनके पास स्मार्ट-गैजेट्स नहीं हैं, वे हमें मिस्ड कॉल भेज कर शिक्षकों द्वारा बनाए गए और पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो या ऑडियो लेक्चर प्राप्त कर सकते हैं। आदिवासी बच्चे जल्द सीख सकें उसके लिए कोर्स को गीतों, कहानियों, पेंटिंग, नृत्य, संगीत और बातचीत के साथ बनाया गया है।’

कुरुमुतु परियोजना की शुरुआत

गौतम ने बताया कि, फिलहाल के दिनों में संगठन का मुख्य फोकस कुरुमुतु परियोजना पर रहा है। अप्रैल 2020 में जब लॉकडाउन के समय शिक्षण केंद्र बंद हो गए, तब हमने स्थानीय आदिवासी शिक्षकों को अंग्रेजी बोलने जैसे कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करना शुरू किया। संगठन ने स्वयंसेवकों के साथ मिलकर अक्टूबर 2020 में प्रोजेक्ट कुरुमुतु को लॉन्च किया गया।

यह परियोजना शहरी क्षेत्रों के युवाओं को आदिवासियों से जुड़ने की सुविधा देती है, जिससे उन्हें कोडिंग, ग्राफिक्स डिजाइनिंग और वीडियो एडिटिंग सिखाई जा सके। इस परियोजना के तहत युवाओं द्वारा चलाए जा रहे आठ केंद्रों में एकत्रित धन के कारण लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध हैं, हमारा लक्ष्य दिसंबर 2021 तक 20 केंद्रों को सुचारू रूप से चलाना है। इस योजना को चलाने के लिए भारत के 12 वॉलंटियर और संयुक्त राज्य अमेरिका के पांच वॉलंटियर की एक टीम मदद करती है।

कैसे बदला आदिवासियों का जीवन ?

सिनचन फाउंडेशन ने आदिवासियों को नए कौशल प्रदान किए है, जिनसे नए अवसर अब उनको मिलने लगे हैं। अब आदिवासी समुदाय के युवा केवल ‘ग्रुप डी’ की नौकरियों के बारे में नहीं बल्कि अपने नए कौशल के कारण, वे कोडिंग की इच्छा रखते हैं, एक कंटेंट राइटर बनते हैं और शहरों में नौकरी पाते हैं।

गौतम ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों और समुदाय के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार ने हमारे काम को हमेशा कठिन बनाया है लेकिन चुनौतियां अभी बहुत बड़ी हैं और हमें जीत प्राप्त करनी है।

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