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सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी में 4 लोग और चारों कृषि कानूनों के समर्थक, कैसे निकलेगा रास्ता ?

कमेटी में चार उन लोगों को रखा है जो पहले से ही चीख-चीखकर तीनों कृषि क़ानूनों की तारीफ़ों के पुल बांधते नहीं थकते। इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या ये लोग जो पहले से ही कृषि क़ानूनों के कट्टर समर्थक हैं, कोई हल निकाल पाएँगे ?

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देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने आज तीनों कृषि क़ानूनों पर रोक लगा दी है। चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबड़े, जस्टिस बीएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम ने तीनों कृषि क़ानूनों को फ़िलहाल टेंपरेरी होल्ड कर दिया है। टेंपरेरी होल्ड का मतलब है जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फ़ाइनल जजमेंट नहीं दे देता, तब तक ये क़ानून लागू नहीं होंगे। यानी क़ानून रद्द नहीं हुए हैं बल्कि कुछ समय के लिए टाल दिए गए हैं… हो सकता है फ़ैसला सरकार के पक्ष में आए और फिर से ये क़ानून बहाल हो जाए। इसलिए किसानों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से उन्हें कोई फ़ायदा नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक काम और किया… एक कमेटी बना दी। कमेटी में चार उन लोगों को रखा है जो पहले से ही चीख-चीखकर तीनों कृषि क़ानूनों की तारीफ़ों के पुल बांधते नहीं थकते। इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या ये लोग जो पहले से ही कृषि क़ानूनों के कट्टर समर्थक हैं, कोई हल निकाल पाएँगे ? आइए जानते हैं ये लोग कौन हैं ?

1. अशोक गुलाटी – अशोक गुलाटी कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइजेस (CACP) के पूर्व चेयरमैन हैं। CACP केंद्र सरकार को फूड सप्लाई और प्राइजिंग के विषयों पर राय देने वाली संस्था है। साल 2015 में सरकार ने कृषि सुधार से जुड़े सुझावों के लिए एक “एक्सपर्ट ग्रुप” बनाया था और उस ग्रुप की सिफारिशों के आधार पर ही तीनों नए कानून बने हैं। इस एक्सपर्ट ग्रुप के चेयरमैन थे अशोक गुलाटी… यानी इन गुलाटी साहब के कहने पर मोदी सरकार ने ये कानून बनाए हैं। साथ ही अशोक गुलाटी पिछले कई महीनों से कृषि कानूनों के फायदे गिना रहे हैं। टीवी से लेकर अखबार तक गुलाटी ये दावा करते हैं कि ये तीनों कृषि कानून किसानों के फायदे में हैं। 2015 में पद्मश्री सम्मान हासिल कर चुके गुलाटी ने तीनों कृषि कानूनों का स्वागत किया था और इसे भारतीय एग्रीकल्चर के लिए 1991 का पल बताया था।

https://twitter.com/SurajKrBauddh/status/1348928252673290241

2. डॉ प्रमोद कुमार जोशी – इस कमेटी के दूसरे मेंबर हैं डॉ प्रमोद कुमार जोशी… मिस्टर जोशी एग्रीकल्चर रिसर्च के फील्ड में बड़ा नाम माना जाता है लेकिन वो भी तीनों कृषि क़ानूनों के समर्थक हैं। वो अपना समर्थन फ़ेसबुक और ट्विटर पर ही नहीं बल्कि अख़बार में लेख लिखकर ज़ाहिर करते हैं। दिसंबर 2020 में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में डॉ जोशी ने अरबिंद पढी के साथ एक लेख लिखा था…. इसमें जोशी ने लिखा था कि ‘ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसान हर बातचीत से पहले लक्ष्य बदल देते हैं। किसानों की माँगे समर्थन के काबिल नहीं हैं।

3. तीसरे सदस्य हैं अनिल घणवत… अनिल घणवत शेतकारी संघठन के अध्यक्ष हैं। नाम से लगेगा कि किसान नेता हैं तो किसानों की भलाई की बात करेंगे लेकिन असल में मिस्टर अनिल घणवत पहले ही इन तीनों कृषि क़ानूनों को समर्थन दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि ये क़ानून किसानों के फ़ायदे में है और इससे APMC की शक्तियां सीमित होंगी जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। यानी मिस्टर अनिल घणवत भी इन कानूनों के पक्षधर हैं।

4. चौथे सदस्य का नाम है भूपिंदर सिंह मान…मिस्टर भूपिंदर भारतीय किसान यूनियन (मान) के अध्यक्ष हैं और ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के भी चेयमैन है। इनका ये संगठन दिसंबर में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिला था और कुछ छोटे-मोटे बदलाव करने को लेकर एक ज्ञापन सरकार को दिया था। लेकिन कुल मिलाकर इनका संगठन भी पूरी तरह से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ नहीं है।

ऐसे में किसानों के मन में आशंका है कि जो लोग पहले से ही कृषि कानूनों के समर्थक हैं, क्या वो इस समस्या का कोई हल निकाल पाएंगे ?

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