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देखिए कैसे जातिवादी सिस्टम ने एक दलित बैंककर्मी का करियर बर्बाद कर दिया !

कानपुर के रहने वाले ओम प्रकाश की ये कहानी आपको बताएगी कि कैसे एक दलित कर्मचारी का करियर बर्बाद करने के लिए पूरा का पूरा सिस्टम ही साज़िशों में लग जाता है।

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64 साल के ओम प्रकाश बस कुछ दिन पहले ही कोरोना संक्रमण से ठीक हुए हैं। कभी बैंक में बतौर विशेष सहायक की नौकरी करने वाले ओम प्रकाश का वक़्त आजकल यूँ ही बीतता है। कानपुर के रहने वाले ओम प्रकाश की ये कहानी आपको बताएगी कि कैसे एक दलित कर्मचारी का करियर बर्बाद करने के लिए पूरा का पूरा सिस्टम ही साज़िशों में लग जाता है। इस बुजुर्ग ने पहले सस्पेंशन झेला, फिर मुक़दमों का सामना किया और अब अपनी ज़िंदगी भर की बचत और पेंशन के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पिछले दिनों ओमप्रकाश और उनका पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आ गया लेकिन बैंक से पेंशन और PF वगैरह का पैसा नहीं मिलने के कारण उन्हें ज़बरदस्त परेशानी का सामना करना पड़ा और अपना इलाज कराने में भी खासी मुश्किलें झेली। 

क्या है पूरा मामला ?

दरअसल ओम प्रकाश कानपुर में बैंक ऑफ इंडिया में बतौर क्लर्क काम करते थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी ड्यूटी बतौर माइक्रो ऑब्ज़र्वर लगी थी। माइक्रो ऑब्ज़र्वर एक गोपनीय रिपोर्ट चुनाव आयोग को देनी होती है कि चुनाव किस तरह संपन्न हुए। लेकिन वोटिंग संपन्न होने के बाद उन्हें कोई गाड़ी लेने ही नहीं आई और उन्हें वहीं छोड़ दिया गया। इस वजह से ओम प्रकाश ने अगले दिन चुनाव आयोग के सामने अपनी रिपोर्ट पेश कर पाए और इतनी बड़ी लापरवाही पर नाराज़गी जताई। उन्होंने लिखित में शिकायत भी की लेकिन उस पर कोई कार्रवाई चुनाव आयोग की ओर से नहीं की गई। बात आई-गई हो गई और 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में फिर से उनकी ड्यूटी लगा दी गई।

लेकिन इस बार ओम प्रकाश ने कह दिया कि पिछली बार इतनी बड़ी लापरवाही होने के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया इसलिए इस बार वो ड्यूटी लगने पर अपनी असहमति जताते हैं। उनकी इसी बात से चुनाव आयोग और बैंक ऑफ इंडिया भड़क गए। 28 जनवरी 2012 को कानपुर में Representative of People Act 1951 की धारा 134 के तहत ओम प्रकाश के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। ये केस अभी भी कानपुर कोर्ट में चल रहा है। ज़िला चुनाव अधिकारी के कहने पर बैंक ने ओम प्रकाश को तुरंत सस्पेंड भी कर दिया था। तब से वो कभी कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं तो कभी बैंक के… उनकी ज़िंदगी मुहाल हो गई है।

मुझ पर गैर-कानूनी कार्रवाई हुई – ओम प्रकाश 

ओम प्रकाश का कहना है कि उनके साथ जो हुआ वो ग़ैर क़ानूनी था क्योंकि भारतीय क़ानून के हिसाब से एक ही अपराध के लिए दो बार सज़ा नहीं दी जा सकती लेकिन ड्यूटी लगने पर नाराज़गी ज़ाहिर करने पर पहले चुनाव आयोग ने कार्रवाई की और फिर बैंक ने सस्पेंड कर दिया। Representative of People’s Act-1951 की धाराओं में बैंक के पास कार्रवाई का हक नहीं होता लेकिन बैंक ने बैंकिंग रेग्युलेशन की धारा 5E के तहत सस्पेंड कर दिया। बैंकिंग रेग्युलेशन की धारा 5E बैंक कर्मी द्वारा लाखों का नुकसान हो जाने पर लगाई जाती है।

जबकि Representative of People Act 1951 की धारा 134 में 500 रुपये का जुर्माना या 15 दिन की जेल की सज़ा का प्रावधान है। सस्पेंशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि किसी भी कर्मचारी को 90 दिनों से ज्यादा सस्पेंड नहीं रखा जा सकता लेकिन बैंक ने ओम प्रकाश को एक साल से भी ज्यादा कुल 419 दिन तक सस्पेंड रखा। ओम प्रकाश का मानना है कि उनके साथ ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि वो दलित समाज से आते हैं और आत्मसम्मान के साथ अपनी ज़िंदगी जीने की कोशिश कर रहे थे। 

ओम प्रकाश इस ज़्यादती के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट भी गए लेकिन कोई राहत नहीं मिली जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया। दिसंबर 2016 से उनकी अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है… वो बैंक से रिटायर हो चुके हैं लेकिन ना ही उन्हें पेंशन मिल रही है और ना ही उनके PF वगैरह का पैसा उन्हें मिला है। सिस्टम की बेरुख़ी और जातिवाद का शिकार हुए ओम प्रकाश को अभी भी न्याय की उम्मीद है। लेकिन सवाल वही है कि क्या उन्हें कभी इंसाफ मिल पाएगा ?

ब्यूरो रिपोर्ट, द न्यूज़बीक 

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