चैत्यभूमी… बहुजन समाज का सबसे बड़ा प्रेरणा स्त्रोत। वो जगह जहां बाबा साहब आंबेडकर की समाधि है। चैत्यभूमी की अनेक कहानियाँ है, यहाँ ऐसे कई पात्र हैं जिन्हें फ़िल्मी पर्दे पर उतारा जा सकता है लेकिन मुंबई का बॉलीवुड जो सबसे ज़्यादा फ़िल्में बनाता है, उसकी नज़र कभी चैत्यभूमी पर नहीं पड़ती।
क्यों एक महानायक के लिए बिना किसी इंविटेशन और बिना किसी बुलावे के लाखों लोग हर साल पहुँच जाते हैं, इसके पीछे की वजह जानने की कोई कोशिश नहीं करता। लेकिन जो काम बॉलीवुड के सवर्ण फ़िल्म मेकर नहीं कर पा रहे वो काम कर रहे हैं बहुजन से आने वाले मशहूर फ़िल्म मेकर सोमनाथ वाघमारे… सोमनाथ बाबा साहब की विश्राम स्थली चैत्यभूमी पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बना रहे हैं, उनकी कोशिश है कि चैत्यभूमी के महत्व को देश-दुनिया के लोगों को बताया जाए। लाइट्स कैमरा कास्ट के दूसरे एपिसोड में जानिए सोमनाथ वाघमारे और उनके प्रोजेक्ट चैत्यभूमी के बारे में।
6 दिसंबर 1956 को बाबा साहब के महा परिनिर्वाण के बाद दिल्ली के सियासी लोगों ने उनकी समाधि को दिल्ली में ना बनने के लिए तमाम षड्यंत्र रचे। कहते हैं तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू नहीं चाहते थे कि बाबा साहब की समाधि दिल्ली में बने क्योंकि दिल्ली में चतुर वर्ण के समर्थक गांधी की समाधि पहले से ही मौजूद थी।
अगर बाबा साहब की समाधि भी संसद के पास दिल्ली में कहीं बन जाती तो ज़रा सोचिए हर साल 6 दिसंबर और 14 अप्रैल को देश की राजधानी में कैसा नज़ारा होता। लेकिन दिल्ली से 1415 किमी दूर मुंबई में चैत्यभूमी पर भी हर साल लाखों लोग आते हैं। सोमनाथ की फ़िल्म ऐसी कई प्रेरक कहानियों को भी आपके सामने रखेगी।
ब्यूरो रिपोर्ट , द न्यूज़बीक