जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है तब भारत के दलितों को इस जानलेवा बीमारी के साथ-साथ जातिवाद जैसे ज़हर का सामना भी करना पड़ रहा है। जिस वक्त इंसानियत कंधे से कंधा मिलाकर इस महामारी को मात देने के लिए एकजुट हो रही है तब भारत में ब्राह्मणवादी दलितों को चुनचुनकर शिकार बना रहे हैं। कोरोना और लॉकडाउन के बीच भी हमारे देश में दलित उत्पीड़न की वारदातों में कोई कमी नहीं आई… उल्टी ऐसी वारदातों में बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है। आइये नज़र डालते हैं कोरोना काल में दलित उत्पीड़न की कुछ वारदातों पर…
सदियों से अछूत कहकर दलितों की परछाई से भी नफरत करने वालों ने पहले फिजिकल डिस्टेंसिंग को सोशल डिस्टेंसिंग का नाम दे दिया…क्योंकि यही तो उनकी परंपरा है… और फिर क्वारंटीन सेंटर्स में दलितों के हाथ का खाना खाने से इनकार कर दिया गया। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जातिवादियों के दिमाग में भरा ज़हर कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक क्यों है?
29 मार्च – तमिलनाडु के मोरप्पनथंगल इलाके में पुलिस की मार से दलित युवक सुधाकर की मौत हो गई…सुधाकर दूसरी जाति की लड़की से प्यार करता था। जब पुलिस उसे थाने में पीट रही थी, तब उसने बाबा साहब की टीशर्ट पहन रखी थी।
12 अप्रैल – यूपी के उन्नाव जिले में दलित परिवार से घर में घुसकर मारपीट की गई… मनिकापुर गांव के प्रधान दिवाकर सिंह और उसके साथियों पर महिलाओं से अभद्रता करने का भी आरोप लगा।
18 अप्रैल – राजस्थान के जोधपुर जिले के बासनी गांव में डुंग्गाराम मेघवाल को कथित उच्च जाति के लोगों ने कुल्हाड़ी से काट डाला क्योंकि वो अपनी ज़मीन नहीं छोड़ रहा था।
20 अप्रैल – यूपी के ललितपुर में एक जातिवादी गुंडे ने दलित व्यक्ति को ट्रैक्टर से कुचलने की कोशिश की… नाकामयाब रहने पर घर को ट्रैक्टर से ढहा दिया।
हमारे देश में हर 15 मिनट में एक दलित के खिलाफ कोई अपराध होता है। रोज़ाना 6 दलित महिलाओं से रेप होता है। मई महीने में भी ये वारदातें जारी रहीं।
15 मई – अहमदाबाद में 16 साल की दलित लड़की को अगवा कर उसके साथ चार लोगों ने गैंगरेप किया।
13 मई – महाराष्ट्र के बीड जिले में पारधी समुदाय के 3 लोगों की हत्या कर दी गई। इनका कथित उंची जाति वालों के साथ ज़मीनी विवाद चल रहा था।
19 मई – यूपी के संभल में ज़मीनी विवाद में बाप-बेटे को दिनदहाड़े कथित उच्च जाति वालों ने गोली मार दी…इस वारदात का वीडियो भी खूब वायरल हुआ था।
27 मई नागपुर शहर में अरविंद बनसोड़ नाम के दलित युवक का कुछ लोगों से झगड़ा हुआ और 29 मई को कथित तौर पर उसने ज़हर पी कर आत्महत्या कर ली। परिवार को हत्या का शक है।
जून महीने में भी जैसे जैसे कोरोना के केस बढ़ रहे थे, वैसे वैसे दलितों पर जातिवादी गुंडों के अत्याचार भी बढ़ते रहे।
4 जून – लखनऊ के बरौली इलाके में चोरी के आरोप में तीन लोगों को बुरी तरह पीटा गया, उनका सिर मुंडवा दिया गया और उनके गले में जूतों की माला डालकर इलाके में घुमाया गया।
6 जून – यूपी के एक गांव में 17 साल के विकास जाटव को सिर्फ इसीलिए मौत के घाट उतार दिया गया क्योंकि वो मंदिर में दाखिल हो गया था।
8 जून – केरल में 20 साल के दलित युवक को तलवार से काट दिया गया… युवक दूसरी जात की लड़की से प्यार करता था।
9 जून – महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ शहर में विराज जगताप नाम के युवक की हत्या कर दी गई, उसके सिर पर रोड और पत्थर से हमला किया गया था। विराज दूसरी जात की लड़की से प्यार करता था।
23 जून – आंध्र प्रदेश के राजामुंडरी जिले में 16 साल की दलित लड़की को नौकरी का झांसा देकर किडनैप किया गया…कई दिनों तक करीब 10 लोगों ने लड़की के साथ गैंगरेप किया।
नागरिक अधिकार संगठन एविडेंस के मुताबिक तमिलनाडु में सिर्फ एक महीने में दलित उत्पीड़न के 25 से ज्यादा केस सामने आए थे। 3 मई तक इनकी संख्या 150 को पार कर चुकी थी। देश भर में ऐसी वारदातें लगातर सामने आ रही हैं।
15 जुलाई – एमपी के गुना में दलित परिवार के साथ पुलिस ने बर्बरता की।
16 जुलाई – गुजरात के बनासकांठा के रावी गांव में 25 साल के पिंटू को पीट-पीटकर मार डाला गया…उसके बदन पर कपड़े तक नहीं थे।
18 जुलाई – कर्नाटक के विजयापुरम जिले में एक दलित युवक को नंगा करके घुमाया गया क्योंकि उसने कथित उच्च जाति के आदमी की मोटरसाइकिल को छू लिया था।
22 जुलाई – पंजाब के जिला तरनतारन के गांव रसूलपुर में एक किसान की जमीन पर कब्जा करने के लिए जमींदार ने अपने साथियों की मदद से उसे अगवा कर लिया. इतना ही नहीं किसान के साथ मारपीट भी की गई और उसके बाद उसे बंधक बनाकर पेशाब पिला दिया गया।
22 जुलाई – आगरा के अछनेरा में दलित महिला की मौत के बाद सवर्णों ने उसका अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया… परिवार को चिता हटानी पड़ी।
NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक भारत में दलित उत्पीड़न के सालाना औसतन 40,000 से ज्यादा मामले दर्ज़ होते हैं। जिसका मतलब है रोज़ाना 100 से ज्यादा ऐसे केस दर्ज़ होते हैं जिनमें दलितों से भेदभाव, मारपीट, हत्या, लूट, जानलेवा हमला, बलात्कार और उत्पीड़न जैसी गंभीर वारदातों का आरोप होता है। लेकिन SC/ST एक्ट तहत दर्ज़ होने वाले कुल मामलों में महज़ 16 फीसदी में ही सज़ा होती है। ऐसे में कोरोना काल भी जातिवादियों के लिए दलितों पर हमले करने का एक मौका बन गया है। मैंने इसीलिए जातिवाद के वायरस को कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक बताया था क्योंकि कोरोना का इलाज तो देर सबेर ढूंढ लिया जाएगा लेकिन जातिवाद नाम के वायरस का पक्का इलाज आज तक नहीं ढूंढा जा सका है।