क़ब्रों को पीटने वाले बीमार लोगों का देश ! यह देश गम्भीर रूप से जाति की बीमारी से ग्रस्त है, हालात दिन प्रति दिन भयानक होते जा रहे हैं. हर दिन कोई ऐसी घटना घटती है, जिसे देखकर, सुनकर और पढ़कर मेरे मन में सवाल आता है कि यह कैसा देश है और कैसे है इसके निवासी ?
कोई इतना मूर्ख कैसे हो सकता है ?
कभी कभी तो ये सामूहिक पागलखाना जैसा लगता है, पक्का शक होता है कि ये बीमार मानसिकता का समाज और राष्ट्र कभी विश्वगुरु रहा होगा? हो ही नहीं सकता… जो लोग इक्कीसवी सदी में भी इतने मूर्ख हैं, वे अतीत में कभी महान रहे होंगे, यह कल्पना काफ़ी हास्यास्पद लगती है?
गिरोह में तब्दील होता समाज
जाति के फ़र्ज़ी दंभ में डूबा हुआ समाज, किसी के स्पर्श मात्र से अपवित्र हो जाने वाला अवैज्ञानिक और डरपोक नागरिक समाज सभ्यता के लिए चुनौती बन जाता है, फिर वह समाज नहीं रहता गिरोह में बदल जाता है।
दुःखद सत्य यही है कि हमने कबीलों से यात्रा शुरू की और गिरोहों में तब्दील होने को अभिशप्त है, यह मानव समाज के पतन की यात्रा है, ये अंत की सूचक है. इस बीमार समाज का शीघ्र इलाज़ नहीं किया गया तो इसकी मौत निश्चित है।
बारिश नहीं हुई तो दलितों की कब्रों को रौंद दो !
लोगों में नफ़रत किस क़दर हावी हो गई है, इसकी बानगी इन तस्वीरों में देखिये. यह राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के गिराब की घटना है, ये लड़के जो सनातनी सवर्ण हिंदू होने के अभिमान की पाठशाला के विद्यार्थी है, इनको इनके परिवार वालों ने ये संस्कार और समझ दी है कि अगर गाँव में बारिश ना हो तो दलित समुदाय के शमशान में जा कर उनके मृतकों की क़ब्रों को जूतों से रोंदना चाहिये, उन पर नमक डाल कर लाठियों से पीटना चाहिये, ताकि इनका देवता इंद्र प्रसन्न हो सके.. और गाँव में बारिश हो सके।
पश्चिमी राजस्थान के सरहदी इलाक़ों के कुछ जगहों के सवर्ण हिंदुओं में यह बीमारी बरसों से मौजूद है, वे अपनी मूर्खता का प्रदर्शन इस मौसम में करते रहते हैं. बाक़ायदा इसके लिए चंदा उगाही करते हैं, इस बेवक़ूफ़ी को वे ढ़ेढ़रिया कहते हैं। ढ़ेढ़ एक अपमानजनक शब्द है, सीधे सीधे गाली ही है , जो कथित उच्च हिंदुओं के तुच्छ सोच की उपज है। आज भी पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में दलितों के लिए ढेढ़ शब्द का इस्तेमाल एक गाली की तरह होता है।
बहुत बार लगता है कि इतनी घटिया भाषा बोलने वाले लोग श्रेष्ठ कैसे होते होंगे? जिनको लोगों को आदर देना नहीं आता, जो इंसान को इंसान नहीं समझते, पशुओं को तो पूजते है और उनके पेशाब को पवित्र मानकर पी जाते हैं, लेकिन अपने ही जैसे इंसान को अपवित्र और अछूत मानते है और उनके हाथ का छुआ पानी तक नहीं पीते है ? क्या इस सामुदायिक पागलपन पर बात नहीं होनी चाहिये ?
नस्लों को भी ज़हरीला बना रहे हैं जातिवादी
सदियों से ऊँच नीच और भेदभाव तथा मान अपमान का सिलसिला जारी है, गिराब उसी बीमार समाज की निशानी है, जिसने अपने बच्चों को भी बीमार कर दिया है, ये दलितों के तो दुश्मन है ही अपने ही बच्चों के भी दुश्मन बन गए है, उनको इतनी वाहियात, अतार्किक और मूर्खता सनी समझ दे रहे हैं कि मृत दलितों की समाधियों को अपमानित करने से बारिश आती है !
वारदात का वीडियो खुद वायरल किया
घटना का वीडियो देश विदेश में फैल गया है, जिन्होंने यह किया और कराया, उन्होंने ही इसका वीडियो भी बनाया और गैंगस्टर 007 का शीर्षक दे कर उसे वायरल भी किया गया है, यह नई क्रीमीनोलोजी है, जो इन दिनों अपराधियों में अकसर दिखाई देती है, वे सरे आम अपराध करते हैं, उसका वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया में वायरल करके खुद को तीसमार खाँ समझते हैं।
कब सुधरेगा ऐेसा समाज ?
बाड़मेर की इस घटना की प्राथमिकी दर्ज हो कर आरोपी भी पकड़े गए हैं जो कि नाबालिग हैं , सही जाँच पड़ताल होगी तो इनके बालिग़ आका भी सामने आ ही जायेंगे, क़ानून अपना काम करेगा, जो भी होना है होगा, लेकिन सवाल उस समुदाय और गाँव समाज पर भी है और इस तरह के कृत्यों में लिप्त जातियों के सभा संगठनों से भी है कि अपने समाज में व्याप्त इस बीमारी का इलाज़ कीजिए, निरंतर सभ्य होते इंसानी समाज में आप कहाँ खड़ा पाते हैं खुद को, ज़रा सोचिये.
जातिवाद का इलाज क्यों नहीं कराते ?
मृतकों की क़ब्रों को लाठियाँ मारने जितनी घृणा के साथ कब तक जियोगे ? ज़िंदा लोगों को तो लाठियाँ– गोलियाँ मार ही रहे हो. मरे हुओं की क़ब्रों को भी मारते रहोगे ? इतनी नफ़रत कहाँ से लाते हो ? इतनी गहन घृणा के साथ जीते जीते एक मुर्दा समाज बनने से बेहतर है कि वक्त रहते इलाज करो और इस तरह की वाहियात और मूर्खतापूर्ण अपराधों से दूरी बनाओ।
सवर्ण सनातनी हिंदुओं की दलितों के प्रति घृणा
इस तरह की घटनाएँ सवर्ण सनातनी हिंदुओं में दलितों के प्रति उनके दिल दिमाग़ में मौजूद नफ़रत को उजागर करती है, इससे ज़ाहिर होता है कि अब भी नागरिक समाज बनने और संविधान और सभ्यता की समझ विकसित करने का काम नहीं हो पाया है, वे किसी आदिम पाषाण युग के भग्नावशेष बने अतीत के ऐतिहासिक दम्भ में डूब कर मूर्खता पर मूर्खता किए जा रहे हैं, उनकी बीमारी बढ़ती जा रही है और ग़ज़ब तो यह है कि बीमार यह मानने को तैयार नहीं है कि वो बीमार है।
(वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट भंवर मेघवंशी की फेसबुक वॉल से साभार)