मुँह में राम बग़ल में छुरी… हिंदी का ये मुहावरा ऐसे दोगले लोगों की पोल खोलता है जो एक तरफ़ तो आपके हमदर्द होने की शेखी बघारते हैं और दूसरी तरफ़ आपका गला काटने के लिए तैयार रहते हैं। दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के मामले में बीजेपी का भी यही चरित्र है।
बुधवार को पीएम मोदी ने नई कैबिनेट बनाई और उसमें चुन-चुन कर दलित और पिछड़ी जातियों से मंत्री भर दिए, कुल 27 ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं। ऐसा करके पीएम मोदी ने ये संदेश देना चाहा कि कैसे बीजेपी ओबीसी की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है लेकिन असल में खेल कुछ और ही चल रहा है।
बीजेपी ने बुधवार को ओबीसी के मंत्री बनाए और अगले ही दिन यानी शुक्रवार को ओबीसी का हक़ मार लिया। मद्रास हाईकोर्ट में बीजेपी ने तमिलनाडु सरकार के उस फ़ैसले का विरोध किया है जिसमें मेडिकल एंट्रेंस एग्ज़ाम NEET के प्रभाव के अध्ययन की बात कही गई है।
NEET में OBC आरक्षण का विरोध किया
मोदी सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में बाकायदा एफिडेविट देकर कहा है कि ‘NEET में OBC आरक्षण पर तमिलनाडु सरकार की बनाई जस्टिस ए के रंजन कमेटी गैरज़रूरी और अवैध है। कमेटी को दिए गए निर्देश ना सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट की स्थिति और विशेषाधिकार के ख़िलाफ़ है बल्कि एक निरर्थक प्रयास भी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से घोषित किए गए क़ानून सभी पदाधिकारियों पर लागू होते हैं।’
NEET में OBC आरक्षण लागू नहीं
NEET यानी National Eligibility cum Entrance Test में फिलहाल OBC आरक्षण लागू नहीं है। NEET के तहत ऑल इंडिया कोटा में OBC छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए आरक्षण नहीं दिया जा रहा। तमिलनाडु सरकार की मांग है कि या तो OBC को आरक्षण मिले या फिर NEET को ही खत्म कर दिया जाए और राज्यों को अधिकार मिले कि वो मेडिकल की पढ़ाई में किसको कितना आरक्षण देंगे।
तमिलनाडु सरकार ने बनाई थी कमेटी
तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने 10 जून को जस्टिस ए के राजन कमेटी बनाई थी, कमेटी का काम है कि उसे ये पता लगाना है कि NEET का क्या प्रभाव पड़ रहा है? तमिलनाडु सरकार NEET में OBC आरक्षण लागू करना चाहती है लेकिन स्टालिन सरकार के इस फैसले के खिलाफ तमिलनाडु बीजेपी के स्टेट सेक्रेट्री के नागराजन मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गए और इसका विरोध किया। यानी बीजेपी ने खुले तौर पर OBC आरक्षण का विरोध किया है।
बीजेपी नेता कोर्ट पहुंच गए
नागराजन की PIL के जवाब में मोदी सरकार ने कहा है कि तमिलनाडु सरकार की कमेटी गलत है। NEET में OBC आरक्षण का मसला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है लेकिन वहां भी मोदी सरकार ने ओबीसी का हक मारने की कोशिश की है। मोदी सरकार का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट NEET में OBC को आरक्षण देता है तो ठीक है, हम नहीं देंगे लेकिन वहीं EWS यानी सवर्ण आरक्षण के मामले में मोदी सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट जाने ही नहीं दिया, पहले ही EWS आरक्षण को NEET में लागू कर दिया है लेकिन ओबीसी के मामले पर बीजेपी दोगली नीति अपना रही है।
OBC के 11,000 कैंडिडेट डॉक्टर नहीं बन पाए
हिंदुत्व का झंडा उठाने वाले ओबीसी समाज को भी ये दोगलापन समझना होगा। एक अनुमान के मुताबिक़ NEET में OBC को आरक्षण नहीं मिलने से ओबीसी समाज के करीब 11,000 कैंडिडेट डॉक्टर नहीं बन पाए। लेकिन अगर OBC समाज इस बात से खुश हो जाए कि मोदी ने अपनी कैबिनेट में 27 ओबीसी मंत्री बनाए हैं तो सिर्फ गलतफहमी होगी क्योंकि खुद स्वघोषित ओबीसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में ओबीसी का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
पावर और अधिकार वाले पद क्यों नहीं ?
2019 में जितेंद्र सिंह ने संसद में बताया था कि मोदी सरकार के 89 सचिवों में एक भी ओबीसी नहीं है। यानी जहां पावर और अधिकारों की बात आती है वहां ओबीसी समाज के लोगों को कुछ नहीं मिला। इस समय देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में एक भी ओबीसी जज नहीं है लेकिन मोदी सरकार कॉलेजियम के जजों को राज्यसभा तो भेज देती है लेकिन ये सवाल नहीं उठाती कि वहां ओबीसी के जज क्यों नहीं हैं?
एमपी में 27 % OBC आरक्षण क्यों नहीं दिया ?
मध्यप्रदेश में जातिवार जनगणना के आँकड़े कोर्ट में पेश किए गए, 2011 की जातिवार जनगणना के मुताबिक़ एमपी में ओबीसी की आबादी 50.09 फ़ीसदी है लेकिन एमपी में ओबीसी को सिर्फ़ 14 फ़ीसदी आरक्षण मिल रहा है। लेकिन बीजेपी की शिवराज सरकार ने आज तक ओबीसी को आबादी के लिहाज़ से आरक्षण नहीं दिया। कमलनाथ सरकार ने 2019 में ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण लागू किया था लेकिन कोर्ट ने उस पर लगा दी। तब से शिवराज सरकार ओबीसी आरक्षण के पक्ष में ठोस दलील तक पेश नहीं कर रही। यानी हर जगह बीजेपी ओबीसी को निपटाने में लगी हुई है।
जातिवार जनगणना के आंकड़े क्यों नहीं जारी करते ?
ओबीसी के अधिकारों की गारंटी के लिए लंबे समय से जातिवार जनगणना की माँग हो रही है लेकिन मोदी सरकार 2011 के आँकड़े दबाकर बैठ गई। अगर आँकड़े सामने आए तो पता चल जाएगा कि किसका हक़ मारा गया और किसने सबसे ज़्यादा मलाई खाई, लेकिन मोदी सरकार जानती है कि अगर आँकड़े बाहर आए तो मंडल कमीशन की सिफ़ारिश पर ओबीसी को मिले 27 आरक्षण को बढ़ाकर 50 फ़ीसदी करने की माँग तेज़ हो जाएगी, इसलिए आँकड़ों पर साँप की तरह कुंडली मार कर बैठ गई और कुछ रेवड़ियां बाँटकर ओबीसी को बहलाने की कोशिश कर रही है।
OBC को झुनझुना भी नहीं मिला – मंडल
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की इस पोस्ट से आपको मेरी बात समझने में और आसानी होगी, दिलीप मंडल लिखते हैं ‘मोदी ने 27 ओबीसी मंत्री बना दिए और NEET के ऑल इंडिया कोटा में OBC आरक्षण लागू नहीं किया. नेशनल लॉ स्कूल के एडमिशन में ओबीसी कोटा नहीं दिया, सेंट्रल यूनिवर्सिटी में OBC के पद खाली छोड़ दिए. बैंक-पीएसयू के बोर्ड में किसी ओबीसी को नहीं रखा, लैटरल एंट्री से सवर्ण अफसर भर लिए. ओबीसी को झुनझुना भी नहीं मिला. ये सौदा कैसा है? इसे डिटेल में समझिए. ओबीसी को अपनी जाति के नेता का चेहरा चमकता देखना है. उनको मोदी जी ने दे दिया. सवर्णों को नौकरी, उच्च शिक्षा, बैंक लोन, सप्लाई का ठेका वगैरह चाहिए, वह उन्हें दिया जा रहा है. साथ में सवर्णों को ये भरोसा भी दिया गया है कि हर मंत्री के सिर पर RSS का एक प्रभारी रहेगा. कोई सामाजिक गड़बड़ी नहीं होगी. जिसको जो चाहिए, वह दिया जा रहा है।’
क्या बहुजनों की बात करेंगे मोदी के OBC ?
इसलिए ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है कि हमारी जाति के आदमी को मंत्री बना दिया क्योंकि भागवत के ओबीसी और फुले-शाहू-आंबेडकर के ओबीसी में बहुत फ़र्क़ है। आपका सिर्फ़ दलित होना या पिछड़ा होना काफ़ी नहीं हैं, आपका सामाजिक न्याय के विचार में यक़ीन करना ज़्यादा ज़रूरी है। लेकिन क्या बीजेपी ओबीसी या दलित मंत्रियों को अपने समुदाय की भलाई का कोई काम करने देगी? क्या जिस तरह से एक स्वघोषित ओबीसी प्रधानमंत्री ने ओबीसी का हक़ मारा, क्या उसी तरह से उसके मंत्री भी यही काम करेंगे? आपका इस बारे क्या सोचना है कमेंट के ज़रिए ज़रूर बताए। वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।