‘मैं एक भारतीय खिलाड़ी हूं, मेरी कोई जाति नहीं। जब कोई खिलाड़ी जीतता है तो वो भारत के लिए जीतता है’ ये शब्द हैं भारतीय हॉकी टीम (पुरुष) के खिलाफ सुमित वाल्मिकी के। सुमित के ये शब्द बाबा साहब के उन शब्दों के मायने बयां करते हैं जब उन्होंने कहा था कि ‘हम सबसे पहले और सबसे आखिर में भारतीय हैं’
भारतीय हॉकी टीम ने इस भावना के साथ टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रच दिया और 41 साल बाद भारत की झोली में मेडल आया। टीम ने इस बार ब्रॉन्ज मेडल जीता है। इसी टीम के बेहद मज़बूत स्तंभ सुमित वाल्मिकी से The News Beak की टीम ने मुलाकात की। दिल्ली के चाणक्यपुरी में The Chanakya मॉल के Cafe C में सुमित चौहान ने ओलंपियन सुमित वाल्मिकी का इंटरव्यू लिया।
मां को याद कर भावुक हुए सुमित वाल्मिकी
जीत के जज़्बे से भरे सुमित वाल्मिकी अपनी मां को बार-बार याद करते हुए कहते हैं कि ‘आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी मां नहीं है।’ मां के प्रति उनके प्यार का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी मां के झुमके से एक लॉकेट बनवाया और उसमें अपनी मां की तस्वीर लगवाई। इसी लॉकेट को पहनकर सुमित ने ओलंपिक में सारे मैच खेले।
कभी मुरथल के होटल में सफाईकर्मी का काम करते थे सुमित
सुमित वाल्मिकी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने बताया कि कैसे आर्थिक तंगी के कारण उन्हें अपने भाई के साथ मुरथल के होटलों में काम भी करना पड़ता था। अपने बीते दिनों को याद कर सुमित कहते हैं कि ‘हिम्मत और हौसले के साथ लगातार कोशिश करनी चाहिए। कामयाबी ज़रूर मिलती है’
खिलाड़ी की कोई जाति नहीं होती – सुमित
पिछले दिनों हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के घर पर हुए जातिवादी हमले के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सुमित कहते हैं ‘खिलाड़ी की कोई जाति नहीं होती, वो भारतीय खिलाड़ी होता है। ऐसे लोगों पर ध्यान मत दीजिए जो खिलाड़ी की जाति खोजते हैं। जब मेडल आता है तो वो भारत का मेडल होता है। मेरे लिए जाति मायने नहीं रखती’
इंटरव्यू का पूरा वीडियो देखें
सुमित ने इस दौरान अपनी ज़िंदगी से जुड़ी कई अहम और दिलचस्प बातें साझा की। सुमित वाल्मिकी का पूरा इंटरव्यू देखने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।