मंगलवार को मोदी सरकार ने ओबीसी समाज को एक बार फिर से धोखा देते हुए मेडिकल एंट्रेंस एग्ज़ाम NEET में बिना OBC आरक्षण दिए परीक्षा की तारीख़ों का एलान कर दिया।
मोदी सरकार ने बनाया SC में केस पेंडिंग होने का बहाना
मेडिकल की पढ़ाई में दाख़िले के दौरान OBC आरक्षण को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में पिछले 6 साल से केस पेंडिंग पड़ा है, मोदी सरकार ने केस का बहाना बनाकर कह दिया है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई फ़ैसला नहीं देता, तब तक ओबीसी को आरक्षण नहीं देंगे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में OBC के अधिकारों से जुड़े केस के इतने लंबे वक़्त से पेंडिंग रहने पर सवाल उठने लगे हैं।
I have written to the Chief Justice of India regarding OBC reservation in All India quota in #NEET. Case is pending since 2015. The Union Govt is saying that OBC reservation can not be implemented till the court passes an order. @LiveLawIndia @barandbench #NOOBC_NONEET pic.twitter.com/2YP9QShcSL
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) July 14, 2021
प्रो दिलीप मंडल ने लिखी CJI को चिट्ठी
इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल ने भारत के मुख्य न्यायधीश N V रमन्ना को पत्र लिखकर सलोनी कुमारी बनाम डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज़ और अन्य केस में जल्दी सुनवाई करने की माँग की है। आइये आपको बताते हैं कि दिलीप मंडल ने अपनी चिट्ठी में क्या लिखा है?
‘प्रिय मुख्य न्यायधीश
भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर मैं रिट पेटिशन नंबर 596 (2015) सलोनी कुमारी बनाम डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज़ और अन्य केस में जल्दी सुनवाई के बारे में लिख रहा हूँ, ये याचिका 2015 से बिना किसी अंतरिम राहत के पेंडिंग पड़ी है। मैं साफ़ कर दूँ कि मैं ना तो इस केस में पार्टी हूँ और ना ही मुझे इस केस के फ़ैसले से कोई व्यक्तिगत लाभ होगा।
मामला मेडिकल की पढ़ाई में ऑल इंडिया कोटा के तहत सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ों के आरक्षण का है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कई बार सुनवाई की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
भारत सरकार ने 13 जुलाई 2021 को जारी नोटिफिकेशन में कहा है कि सरकार NEET 2021 में ऑल इंडिया कोटा के तहत तब तक OBC आरक्षण नहीं देगी जब तक कोर्ट इस याचिका का फैसला ना कर दे।
इस केस की मेरिट और अन्य पहलुओं को छुए बिना मैं आपकी जानकारी में ला दूँ कि ऑल इंडिया कोटा में पहले से ही राज्यों और केंद्रीय संस्थानों में SC-ST और विकलांग कोटा लागू है। SC-ST को 31 जनवरी 2007 को अभय नाथ और अन्य बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी केस में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर आरक्षण मिल पाया।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक सुरक्षाएँ मिली हैं लेकिन फिर भी हर साल इन वर्गों के छात्रों की हज़ारों मेडिकल सीटों का नुक़सान हो रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को अभी भी सलोनी कुमारी केस में फ़ैसला सुनाना है। ये बात मैं उक्त याचिका में पूर्वनिर्धारित परिणाम की किसी उम्मीद के बिना कह रहा हूं।
न्यायालय के तथ्यात्मक अवरोधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, मैंने और मेरे जैसे बहुत से लोगों ने ये पाया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों के आरक्षण से जुड़े मसलों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ग़ैर ज़रूरी रूप से लटकाया जाता है जिससे इन वर्गों के ना सिर्फ़ न्याय तक समान पहुँच के संवैधानिक अधिकार समेत कई तरह की संवैधानिक सुरक्षाओं का उल्लंघन होता है। इसलिए मैं आपसे अपील करता हूँ कि ऐसे तमाम केसों को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्राथमिकता दी जाए ताकि उन्हें न्याय मिलने में देरी ना हो।
मैंने यह भी देखा है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में सुनवाई और परिणाम में कुछ मामलों की मिसाल मिलती है और इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि सभी के लिए न्याय तक पहुंच में समानता सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र तैयार किया जाए ताकि कुछ लोग वंचित न हों। संवैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों और संविधान के तहत प्रदान किए गए न्याय के तंत्र को उनके लिए केवल औपचारिकता भर नहीं रहनी चाहिए।
आख़िर में मैं आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट को निर्देश दें कि महीने भर में रिट पेटिशन नंबर 596 (2015) का निपटारा करें।’
क्या मामले में जल्द सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट ?
दिलीप मंडल ने सीधे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को चिट्ठी लिखकर बेहद गंभीर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट ओबीसी समाज के हितों से जुड़े इस बेहद अहम केस में जल्द सुनवाई कर कोई फ़ैसला देता है या फिर मामले को सालों साल लटकाने का ढर्रा चलता रहेगा?