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जब डॉ आंबेडकर ने लंदन में अंग्रेज़ी सरकार को सीधे ललकारा था !

डॉ आंबेडकर के आलोचक कई बार ये दावा करते हैं कि बाबा साहब ने कभी देश की आजादी में हिस्सा नहीं लिया और ना ही कभी अंग्रेजों का विरोेध किया। लेकिन ऐसे लोग अफवाह फैलाने के अलावा औैर कुछ नहीं कर रहे होते।

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डॉ आंबेडकर ने लंदन में पहले गोलमेज़ सम्मेलन में अछूतों का प्रतिनिधित्व किया था। ये फोटो दूसरे गोलमेज सम्मेलन की है। (Photo-Internet)

डॉ आंबेडकर का मानना था कि राजनीतिक क्रांति के साथ-साथ सामाजिक क्रांति भी बेहद ज़रूरी है। जब उन्हें 1930-31 में लंदन में हुए पहले गोलमेज सम्मेलन के लिए बुलाया गया तो उन्होंने भारत की अंग्रेजों से आज़ादी के साथ-साथ भारत में अछूतों के लिए सवर्णों से आज़ादी की भी मांग की। उन्होंने बेहद सख्त लहजे में अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा कि अब भारत की जनता उनके कहे मुताबिक चलने वाली नहीं है।

सम्मेलन में बोलते हुए बाबा साहब ने कहा था ‘मैं भारत की आबादी के पाँचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ। ये आबादी ब्रिटेन और फ़्रांस की आबादी से बढ़ी है। भारत में ये आबादी दास या अर्ध-दास से बदतर ज़िंदगी जी रही है। भारत के डिप्रेस्ड क्लास के लोग भी सरकार को बदलना चाहते हैं। हम समय के साथ आगे बढ़ने की बजाय समय काट रहे हैं। ब्रिटिश हुकूमत से पहले हम लोग घृणित समझे जाते थे। गाँव के तालाब से हम पानी नहीं पी सकते थे। मंदिर और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर हमारा प्रवेश निषेध था। फ़ौज में हमारी बहाली हो नहीं सकती थी। क्या ब्रिटिश हुकूमत ने इस समस्या के समाधान के लिए कोई उपाय किए ? ब्रिटिश हुकूमत बताए कि 150 साल के अंग्रेज़ी शासन में हमारे उत्थान के लिए क्या काम हुआ?’

अंग्रेजों पर बोला तीखा हमला

बाबा साहब ने ब्रिटिश पीएम रैमसे मैकडॉनल्ड के सामने ही अंग्रेजी सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा ‘ये सरकार जानती है कि पूँजीपति मज़दूरों का शोषण कर रहे हैं। ज़मींदार किसानों का खून चूस रहे हैं। सामाजिक बुराई चारों तरफ़ व्याप्त है। लेकिन क्या इस पर कोई क़ानून बना ? हम ऐसी सरकार चाहते हैं जो किसी जाति या वर्ग के लिए नहीं बल्कि पूरे देश की जनता के हित में काम करे। हम ऐसी सरकार चाहते हैं जिसे पता हो कि कहां तक उनकी बात मानी जाएँगी और कहां से प्रतिरोध शुरू होगा। हमें ऐसी सरकार चाहिए जो सामाजिक सुधार के लिए क़ानून बनाने से घबराए नहीं।’

स्वशासन में अछूतों को मिले समानता की गारंटी

उन्होंने कहा ‘हम स्व-शासन चाहते हैं लेकिन एक सवाल है कि जब स्व-शासन मिल जाएगा तो उसमें डिप्रेस्ड क्लासेज़ की क्या स्थिति होगी? हम कहां होंगे उस स्व-शासन में? भारत का समाज ऊपर से नीचे तक टुकड़ों में बंटा हुआ है जिसमें बंधुत्व और समानता का सिद्धांत नहीं है। यही नहीं, राजनीतिक नेतृत्व जिन लोगों के हाथ में हैं…वो भी जातिवाद की बुराइयों को दूर करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए जब तक राजनीतिक शक्ति हमारे हाथ में नहीं आती, तब तक हमारी समस्याओं को समाधान संभव नहीं। हमारी मुक्ति संभव नहीं।’

अंग्रेजों को दी खुली चुनौैती 

बाबा साहब ने खुली चुनौती देते हुए कहा कि ‘डिप्रेस्ड क्लास के लोगों ने बहुत इंतज़ार किया लेकिन अब कोई चमत्कार होने वाला है। जब तक किसी संविधान को बहुसंख्यक जनता स्वीकार नहीं करती तब तक वो संविधान लागू नहीं हो सकता। वो समय चला गया जब आप इच्छा ज़ाहिर करते थे और भारत की जनता मान लेती थी। तर्क-वितर्क करके आप संविधान बना लेंगे और चलवा लेंगे, ऐसा नहीं होगा। लोगों की सहमति बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। यदि आप चाहें तो ये संभव है।’

बाबा साहब के ये तेवर देखकर हर कोई हैरान रह गया था। ये पूरी जानकारी आप Writing and Speeches of Dr Ambedkar, Vol-17, Part-1, Page-63 Onwards पर भी पढ़ सकते हैं। प्रो रतन लाल के साथ ये वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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