मूकनायक बंद होने के बाद डॉ आंबेडकर ने 3 अप्रैल 1927 को दूसरा मराठी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत‘ निकाला। इसका संपादन डॉ आंबेडकर खुद करते थे। ये पत्र बॉम्बे से प्रकाशित होता था। इसके माध्यम से वो अछूत समाज की समस्याओं और शिकायतों को सामने लाने का काम करते थे। एक संपादकीय में उन्होंने लिखा था ‘बाल गंगाधर तिलक अगर अछूतों के बीच पैदा होते तो ये नारा नहीं लगाते कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, बल्कि वो कहते कि छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।‘ 34 अंक निकलने के बाद आर्थिक हालात सही नहीं रहे और बाबा साहब को ये पत्र बंद करना पड़ा।

3 अप्रैल 1923 – क़रीब 3 साल तक लंदन और जर्मनी में रहने के बाद डॉ आंबेडकर मुंबई पहुँचे। इन तीन सालों में उन्होंने 3 डिग्रियाँ हासिल कीं। 3 सालों के अध्ययन में डॉ आंबेडकर एमए, पीएचडी, बैरिस्टर बन गए थे।