ये तस्वीर हमारे मुल्क की उस भयानक सच्चाई से रूबरू कराती है, जिसे चाहकर भी कोई छिपा नहीं सकता। इन मासूमों की ये तस्वीर सबूत है कि कैसे इस मुल्क में रहने वाले लोगों की रगो में जातिवाद लहू बनकर दौड़ रहा है।
गुजरात में जातिवाद का घिनौना रूप
ये तस्वीर गुजरात के सरपदड गांव की है। राजकोट से 21 किमी दूर इस गांव में पांच आंगनवाड़ी हैं। लेकिन दलितों के बच्चों के लिए एक आंगनवाड़ी है जहां सिर्फ दलित समाज के बच्चे पढ़ते हैं। इस आंगनवाड़ी में ना ही सवर्ण बच्चे आते हैं और ना ही दलित बच्चे दूसरी आंगनवाड़ी में जा सकते हैं। बाक़ी की चार आंगनवाड़ियों में सिर्फ़ स्वर्णों के बच्चे ही पढ़ते हैं।
50 मीटर की दूरी पर है आंगनवाड़ी
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस गांव की जनसंख्या 4500 है। वहीं, दलित और अन्य समाज का आंगनवाड़ी केंद्र बमुश्किल 50 मीटर की दूरी पर ही है। फिर भी यहां बच्चे अलग–अलग पढ़ते हैं। दो नंबर आंगनवाड़ी अघोषित तरीक़े से दलितों के लिए ही बनकर रह गई है जहां सिर्फ़ दलितों के बच्चे ही आपको दिखाई देंगे। इस आंगनवाड़ी के पिछले हिस्से में दलित समाज की बस्ती है। यहां अन्य समाज के बच्चे आंगनवाड़ी में नहीं आते हैं।
घरों से ही मिलती है जातिवाद की सीख
भारत में जातिवाद सिखाने की सबसे पहली पाठशाला घर है। हमारे मुल्क में बाक़ायदा करो में बच्चों को ये सिखाया जाता है कि किसके साथ खेलना है, किसके साथ नहीं खेलना है, किससे बात करनी है और किससे बात नहीं करनी है। अपनी जाति पर गर्व करना और दूसरे की जाति को नीच मानने की सीख सबसे पहले घरों से ही मिलती है।
पीढ़ी दर पीढ़ी पिलाया जा रहा जातिवाद का ज़हर
ये तस्वीर सबूत है कि कैसे घटिया मानसिकता वाले लोग बचपन से ही जाति का बीज बो देते हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी से तीसरी पीढ़ी तक जातिवाद का ज़हर यूँ ही पिलाया जाता रहता है। जातिवाद हमारे देश की नस्लें बर्बाद कर रहा है लेकिन फिर भी किसी को चिंता नहीं।
ब्यूरो रिपोर्ट, द न्यूज़बीक