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पेरियार की मूर्ति पर लिखे विचारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कोर्ट ने जारी किया नोटिस

पेरियार की मूर्ति के नीचे लिखे उनके कुछ विचारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

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पेरियार…ये ऐसा नाम है जिसे सुनते ही मनुवादी काँपने लगते हैं। पेरियार के नाम, उनकी मूर्तियों और उनके विचारों से मनुवादी बहुत डरते हैं। पेरियार के विचार और कथनों से आज भी कई लोगों को आपत्ति है। पेरियार की मूर्ति के नीचे लिखे उनके कुछ विचारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

क्या है पूरा मामला ?

दरअसल डॉ एम देवनायगम नाम के शख़्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर माँग की है कि तमिलनाडु में लगी पेरियार की मूर्तियों पर लिखे उनके विचारों को हटाया जाए क्योंकि वो भगवान का अपमान करते हैं और भगवान को मानने वाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं।

मूर्तियों पर क्या लिखा है ?

पेरियार की मूर्ती के नीचे लिखा है ‘कोई भगवान नहीं, कोई भगवान नहीं, कोई भगवान नहीं, ईश्वर का उपदेश देने वाले मूर्ख हैं, भगवान की बात फैलाने वाले दुष्ट हैं और जो भगवान से प्रार्थना करते हैं वे बर्बर हैं।’

पेरियार अन्ना की इन बातों से भगवान के भक्तों की भावनाएँ आहत हो गई हैं। याचिका कर्ता ने दलील दी है कि इस तरह के शिलालेखों वाली ये मूर्तियां भगवान, धर्म और आस्तिक का उपहास कर रही हैं, जो कि राज्य द्वारा स्वीकृत धर्म की सार्वजनिक निंदा के समान हैं और धर्म-निरपेक्षता के सार पर प्रहार करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ए एस ओका ने की और बेंच ने तमिलनाडु सरकार को इस बारे में नोटिस जारी कर जवाब माँगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की स्टालिन सरकार से जवाब माँगा है कि वो इस बारे में क्या सोचती है?

मद्रास हाईकोर्ट में खारिज हुई थी याचिका

ऐसी ही याचिका 2019 में मद्रास हाईकोर्ट में भी दायर की गई थी। तब भी पेरियार के इन नास्तिक विचारों का हवाला देकर धार्मिक भावनाओं के आहत होने की दुहाई दी गई थी। तब मद्रास हाईकोर्ट ने याचिका को ख़ारिज करते हुए बेहद दिलचस्प टिप्पणी की थी। हाईकोर्ट ने कहा था ‘यदि याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, ललई सिंह यादव मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में धर्म और ईश्वर के अस्तित्व पर अपने विचार व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है, तो दूसरे प्रतिवादी और पार्टी के सदस्य, या थंथई पेरियार के अनुयायी, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों का प्रयोग करते हुए, इससे असहमत होने का अधिकार रखते हैं।’

आसान भाषा में मद्रास हाईकोर्ट के इस फ़ैसले का मतलब ये है कि जैसे आस्तिक लोगों को आर्टिकल 19 तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी और आर्टिकल 25 के तहत धर्म को मानने की आज़ादी है वैसे ही देश के नास्तिक नागरिकों को अपना अलग मत रखने की भी आज़ादी है। डॉ एम देवनायगम ने मद्रास हाईकोर्ट के इसी फ़ैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है।

याचिका में ये भी कहा गया है कि तमिलनाडु सरकार ने मानवीय गरिमा की रक्षा की अपनी जिम्मेदारी को त्याग दिया है और पूरे सूबे में ‘पेरियार’ की मूर्तियों पर इस तरह के शिलालेखों की अनुमति देकर लोगों की गरिमा को बदनाम किया है। दलील गरिमा की है लेकिन जिस धर्म में शूद्रों-अतिशूद्रों के अस्तित्व को ही नकार दिया जाता है, वहाँ मानव की गरिमा के लिए हुंकार भरने वाले पेरियार के विचार लोगों को चुभने लगते हैं।

वैसे पेरियार साहब ने कहा था ‘नास्तिक होने के लिए तार्किक बुद्धि चाहिए। नास्तिक वही हो सकता है जो तार्किक हो, सवाल कर सके। आस्तिक होने के लिए बुद्धि की जरूरत नहीं होती।’ वैसे ग़ज़ब तो ये है कि धार्मिक लोगों की भावनाएँ किसी भी बात पर आहत हो जाती है लेकिन उन धर्मग्रंथों में जिनमें दलित-बहुजनों और महिलाओं के बारे में घटिया से घटिया बातें लिखी हैं, क्या उनसे दलित-बहुजनों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचती ?

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