11 मई 1888 को ज्योतिबा फुले को मिली “महात्मा“ की उपाधि। ज्योतिबा फुले इस नाम को हम सब ने सुना है, और हम इन्हें राष्ट्रपिता के रुप में भी जानते है, इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 में महाराष्ट्र के पुणे में माली जाति में हुआ और उनका परिवार फूल बेचने का काम करता था इसलिए उनका नाम फूले पड़ा।
शिक्षा क्रांति के लिए लगा दिया जीवन
महात्मा फुले को बचपन से ही पढ़ने-लिखने को बहुत शौक़ था। बीच में पढ़ाई भी छूटी लेकिन उन्होंने दोबारा मौका मिलने पर पढ़ाई से ऐसा रिश्ता बनाया कि वो आखिरी सांस तक शिक्षा क्रांति के काम में लगे रहे। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को भी शिक्षित किया जो आगे चलकर भारत की पहली महिला टीचर बनीं।
आज का बहुजन इतिहास – 11 मई 1888
आज ही के दिन राष्ट्रपिता जोतिबा फुले को 'महात्मा' की उपाधि से नवाज़ा गया था। जय फुले-जय भीमFollow @TheNewsBeak & @TheShudra pic.twitter.com/qqEkAtQzsr
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सत्यशोधक समाज की स्थापना की
उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को सुधारने में लगा दिया। महात्मा फुले ने दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये। 24 सितंबर 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। महात्मा फुले ने समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा की मांग की।
सबसे शानदार समाज सुधारक थे फुले
महात्मा फुले समाज में फैली जाति व्यवस्था के विरोधी थे। उन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। बाल–विवाह का विरोध किया और साथ ही विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे। समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए, उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल खोला जिसे लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत हुई।
बाबा साहब ने गांधी से एक बार कहा था 'इस देश में जाने कितने महात्मा आए और धूल उड़ाकर चले गए। इस देश में कोई महात्मा हुआ है तो वो महात्मा जोतिबा फुले हैं।' राष्ट्रपिता जोतिबा फुले का 'माली से महात्मा' बनने का सफर हमेशा प्रेरित करता रहेगा। जय फुले-जय भीम https://t.co/VsBI9x5yi1
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किसने दी ज्योतिबा फुले को “महात्मा” की उपाधि ?
सत्य शोधक समाज की स्थापना के बाद इनके सामाजिक कार्यों की सराहना देश भर में होने लगी। समाज कल्याण और सेवा भाव को देखते हुए उनके अनुयायियों, मित्रों, शुभचिंतकों एवं प्रशंसकों ने मांडवी के कोलीबाड़ा हाल में 11 मई 1888 में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया, जहां उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान की गई।
विट्ठलराव कृष्णाजी वंडेकर ने ज्योतिबा फुले को महात्मा कहकर बुलाया और फिर सभा में मौजूद सभी लोगों ने ‘महात्मा फुले’ का नारा लगाया। इस तरह सर्वसम्मति से उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। वास्तव में फुले ने हाशिये पर खड़े बहुसंख्यक पीड़ित वंचित लोगों को शिक्षा रूपी हथियार देकर उनको मुख्यधारा में शामिल होने योग्य बनाया था।